SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 206
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [२] उद्वेग : शंका : नोंध १५५ मिलते। यह तो दर्शन करने को मिले तो वीतरागता का वर्णन समझ सकते हैं कि वीतरागता कैसी होती है! और हम उस तरह रहते हैं। देखो न, किसी के साथ मतभेद या कोई झंझट है हमें ? सामने वाला उल्टा बोले तब भी कोई झंझट है ? उनके साथ किस तरह से 'डीलिंग' करना वह मुझे आता है ! वीतराग रहना और 'डीलिंग' करना, दोनों साथ में रहता है। डीलिंग पुद्गल करता है और हम वीतराग रहते हैं। अतः वीतरागता देखने को मिली इस काल में, यदि समझे तो! गहरे उतरें न, तो 'प्योर' वीतरागता देखने को मिलेगी और हम ज़रा सी भी नोंध नहीं रखते। हो जाए, उसके बाद नोंध नहीं रखते। नोंध पोथी ही निकाल दी प्रश्नकर्ता : तारीफ करें, फूल चढ़ाएँ उसकी भी नोंध नहीं, और पत्थर मारे उसकी भी नोंध नहीं? दादाश्री : हाँ। वर्ना नोंध पोथियाँ इकट्ठी होते-होते पूरा उल्टा परिणाम आता है और उसके प्रति आपकी दृष्टि बदल जाती है। वह जब आपको देखता है न, तो उसे आपकी दृष्टि बदली हुई लगेगी। नोंध हुई उसका क्या सामने वाले को पता नहीं चलेगा? कि 'इसने नोंध रखी है, पिछली बार मैंने जरा कुछ बात की थी उसकी नोंध है इन्हें,' ऐसा तुरंत पता चल जाता है। इन लोगों को देखना बहुत आता है। बाकी कुछ तो नहीं आता लेकिन इस प्रकार सामने वाले की आँखें देखना बहुत आता है कि किस चीज़ की नोंध रखी है लेकिन वे जब हमारी आँख में वीतरागता देखते हैं तो तुरंत समझ जाते हैं कि 'दादा' वही हैं, जैसे थे वैसे के वैसे ही हैं ! हमारी आँखों में वीतरागता दिखाई देती है। जैसे कोई खराब चारित्र का मनुष्य हो, वह उसकी आँखों पर से पहचाना जा सकता है, लोभी भी उसकी आँखों पर से पहचाना जा सकता है, उसी प्रकार से वीतराग भी उनकी आँखों पर से पहचाने जा सकते हैं। उनकी आँखों में कोई चंचलता (स्वार्थ,कपट) नहीं होती, किसी भी प्रकार की चंचलता नहीं होती! यानी कि हममें नोंध नहीं है।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy