SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 204
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [२] उद्वेग : शंका : नोंध यदि शंका होगी तो तुझे चिपकेंगे और तू निःशंक है तो तुझे स्पर्श नहीं करेंगे। 'दादा' की आज्ञा में रहेगा तो तुझे स्पर्श नहीं करेगा ! १५३ मूल हकीकत में, शंका होने जैसा है ही नहीं । वास्तव में कुछ करता ही नहीं है।‘तू’ ऐसी कोई क्रिया करता ही नहीं है। यह तो सिर्फ भ्रांति ही है, गाँठ पड़ चुकी है। शुद्धात्मा, वह संज्ञा है । खुद शुद्ध ही है, तीनों काल में शुद्ध ही है, यह समझाने के लिए है । अत: जब संज्ञा में रहता है तो फिर मज़बूत हो जाता है । उसके बाद अपना 'केवलज्ञान स्वरूप ! ' बाकी, ‘दरअसल आत्मा' तो 'केवलज्ञान स्वरूपी' ही है । मुझमें और आपमें फर्क क्या है ? 'हम' 'केवलज्ञान स्वरूप' में रहते हैं और 4 'आप' (महात्मा) शुद्धात्मा की तरह रहते हो । आपको मूल आत्मा की जो शंका थी वह चली गई, इसलिए दूसरी शंकाएँ भी चली जाती हैं लेकिन फिर भी बुद्धिशाली लोगों को कहीं फिर से शंका, मूल स्वभाव अगर वैसा हो न, तो फिर से शंका होने लगती है । शंका रखने जैसा है ही कहाँ प्रश्नकर्ता : आपके पास, अब अंत में ऐसा लगता है कि अब किसी भी जगह पर शंका नहीं रही और हम 'कन्विन्स' हो गए हैं । दादाश्री : हाँ, यहाँ शंका रहती नहीं है न! और शंका रखने जैसा जगत् ही नहीं है। यदि शंका रखने जैसा जगत् होता न, तो मैं आपसे कहता ही नहीं कि 'अरे, मेरी गैरहाज़िरी में आप ऐसी-वैसी शंका मत करना।' और मैंने तो आपसे यह कहा है कि 'खाना, पीना, ' सब कहा है ऐसा भी कहा है कि लेकिन 'ऐसी शंका वगैरह मत करना, ' .' क्योंकि नि:शंक जगत् मैंने देखा है, तभी मैं आपसे कह सकता हूँ न?! मैंने नि:शंक जगत् देखा है, वह इस दिशा में नि:शंक है और दूसरी दिशा में शंका वाला है तो यह नि:शंक दिशा बता देता हूँ, ताकि फिर झंझट ही नहीं न! अब अगर शंका रखें ही नहीं तो चलेगा या फिर नहीं चलेगा ?
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy