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________________ आप्तवाणी - ९ अंदर धूल उड़ रही हो न, तो सामने का नहीं दिखाई देता। इसी प्रकार कर्म के जंजाल के कारण सामने का दिखाई नहीं देता और उलझन में डाल देता है लेकिन यदि ऐसी जागृति रहे कि 'मैं तो शुद्धात्मा हूँ' तो वह जंजाल खत्म हो जाएगा। भगवान महावीर जैसी दशा रहे, ऐसे ये पाँच वाक्य (पाँच आज्ञा ) दिए हैं आपको ! १४६ मार्ग सरल है, आसान है, सहज है, लेकिन उसकी प्राप्ति दुर्लभ है। 'ज्ञानीपुरुष' का मिलना बहुत मुश्किल चीज़ है। यदि मिल जाएँ तो 'ज्ञान' मिलना बहुत मुश्किल है। कई लोग तो सात-सात सालों से धक्के खा रहे हैं, फिर भी 'ज्ञान' नहीं मिला। कई तीन सालों से धक्के खा रहे हैं और 'ज्ञान' नहीं मिला, और कुछ को तो एक ही घंटे में मिल गया है । इस प्रकार हर किसी के संयोग अलग तरह के होते हैं न ! पुस्तक से न छूटे संदेह प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, यों तो देहधारी मनुष्य के माध्यम से ही यह प्रक्रिया होती है न! देहधारी मनुष्य में ही भगवान प्रकट होते हैं और तभी संदेह छूटता है न ? पुस्तक द्वारा संदेह नहीं छूटता न! दादाश्री : पुस्तक में कुछ भी नहीं होता और कुछ नहीं मिलता । पुस्तक में तो लिखा होता है कि ' शक्कर मीठी है ।' उससे क्या अपना मुँह मीठा हो गया ? पुस्तक में 'शक्कर मीठी है' ऐसा लिखा है, लेकिन उससे हमें क्या फायदा हुआ ? मुँह में रखेंगे तो मीठी लगेगी न ? ! प्रश्नकर्ता : यानी ऐसे देहधारी मनुष्य, जिनमें भगवान प्रकट हुए हों, वे मिलते नहीं है, और पुस्तकें कुछ काम करती नहीं, तो क्या फिर घूमते रहें ? दादाश्री : हाँ, भटकना ही है बस । प्रश्नकर्ता : इस दुकान से उस दुकान और उस दुकान से और किसी दुकान पर । दादाश्री : हाँ, अलग-अलग दुकानों पर ही घूमता रहता है I
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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