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________________ आप्तवाणी - ९ में भी लिखते हैं कि वकील साहब ने हस्ताक्षर किए, कि तुरंत 'एक्सेप्ट' ! इतने सारे लोग कबूल करते हैं, फिर उसे शंका होगी ही कैसे ? ! झूठे ज्ञान पर वहम १३४ यानी किसी के खुद के ही ज्ञान पर जो वहम डाल दे, वे कहलाते हैं 'ज्ञानी'! खुद का ज्ञान तो कभी भी झूठा हो ही नहीं सकता न? लेकिन 'ज्ञानी' वह सब कर सकते हैं, तो उसे खुद को वहम हो जाता है। वह ' रोंग बिलीफ' निकल गई तो काम हो गया ! एक व्यक्ति तो मुझसे ऐसा कहने लगा, 'दादा, मुझे कभी भी अपने आप पर शंका नहीं हुई, आज मुझे शंका हो गई।' मैंने कहा, 'मैं चंदूभाई हूँ, आपके उस ज्ञान पर वास्तव में वहम हुआ न?' वहम अर्थात् 'क्रेक' पड़ गया पूरे में। यानी 'मैं चंदूभाई हूँ' उस ज्ञान पर भी 'क्रेक' पड़ जाना चाहिए न ? शंका होनी चाहिए न ! और सच्चे ज्ञान में निःशंक रहना है। ये तो, झूठे ज्ञान में नि:शंक रहे हैं, शंका रहित रहे हैं! अर्थात् अभी तक जाने हुए ज्ञान पर वहम पड़ने लगे न, तभी से हम समझ जाते हैं कि वह ज्ञान टूटने को है । जिस पर वहम पड़ा, शंका हुई न, उस ज्ञान के खत्म होने की शुरुआत हुई। यानी सामने शंका पड़े, ऐसा ज्ञान होना चाहिए न ! और सच्चे ज्ञान पर कभी भी शंका नहीं होती । हाँ, शायद कभी आवरण के कारण समझ में नहीं आए, तो वह बात अलग है। बाकी, सच्चे ज्ञान पर शंका नहीं होती, क्योंकि शरीर में आत्मा है न! वहम ' अहंकार' पर ही कभी भी इस अहंकार पर वहम नहीं हुआ। सभी चीज़ों पर वहम हुआ है लेकिन अहंकार पर वहम नहीं हुआ । 'यह चंदूभाई, वह मैं हूँ' इस पर वहम हुआ तो वह अहंकार पर वहम हुआ कहलाएगा। और 'चंदूभाई' पर वहम हुआ, वह निकाल नहीं देना है आपको। उसे 'ड्रामेटिक' तौर पर रखना है । कोई भर्तृहरि का नाटक कर रहा हो, I
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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