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________________ १३२ आप्तवाणी-९ प्रश्नकर्ता : उसे हम पर संशय हुआ हो तो क्या हमें पूछना पड़ेगा कि संशय क्यों हुआ? दादाश्री : पूछने में मज़ा ही नहीं है। वह मत पूछना। आपको तुरंत ही समझ जाना है कि 'अपना ही कोई दोष है', वर्ना शंका क्यों हुई? कितने ही लोग चोर नहीं होते फिर भी उन पर चोरी की शंका होती है, तो वह पहले कभी चोर रहा होगा, वर्ना यों ही शंका नहीं होती। प्रश्नकर्ता : सामने वाले व्यक्ति की दृष्टि ऐसी हो तो हम क्या करें? दादाश्री : नहीं, सामने वाले की दृष्टि ऐसी नहीं होती। वह अपनी ही भूल का परिणाम है। जगत् इतना अनियम वाला नहीं है कि आपमें भूल नहीं हो फिर भी सामने वाले की ऐसी दृष्टि उत्पन्न हो । जगत् बिल्कुल नियम वाला है, एक-एक सेकन्ड नियम वाला है! ___ 'भुगते उसी की भूल' यह वाक्य लगा दिया कि हल आ गया। जो शंका कर रहा है, वह भुगत रहा है या जिस पर शंका होती है, वह भुगत रहा है? वह देख लेना। प्रश्नकर्ता : मेरी समझ के अनुसार तो 'दादा' ने जो ये पाँच आज्ञा दी हैं, उनका पालन ठीक से नहीं होने के कारण ये सब प्रश्न और शंकाएँ उपस्थित होते हैं। दादाश्री : हाँ, वर्ना होंगी ही नहीं। आज्ञा पालन करेंगे तो कुछ भी नहीं होगा। आज्ञापालन में ज़रा कमी आए तो वैसा हो जाता है। आज्ञा पालन करते हैं न, वैसे तो लगभग हज़ारों लोग अपने यहाँ समाधि में रहते हैं। जहाँ शंका करनी है, वहाँ जग निःशंक और शंका करने की एक ही जगह है कि "क्या मैं वास्तव में 'चंदूभाई' हूँ?" इतनी ही शंका करते रहना है। वह आत्महत्या नहीं है। प्रश्नकर्ता : 'मैं चंदूभाई हूँ' उस बात पर ही शंका हो....
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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