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________________ [२] उद्वेग : शंका : नोंध १२९ इस तरह 'आप' चाहे कितना भी डाँटोगे तो कोई शिकायत करेगा 'आपकी'? पुद्गल भावों की नहीं सुनना शंका होने लगे तो सबकुछ चिपट जाता है। भीतर जो बैठे हुए हैं वे सभी जकड़ लेते हैं। वह चेतन भाव नहीं हैं, जड़ भाव चेतन का क्या कर सकते हैं? अब पुरुष बनने के बाद उल्टे-सीधे विचार नहीं आएँगे और अगर आ जाएँ तो उन्हें सुनना मत। वे सभी पुद्गल भाव हैं। यानी अगर वे आएँ तो उन्हें आप सुनना मत। फिर कोई नाम ही नहीं देगा न! कुत्ते भौंकते हैं, बस उतना ही। हाथी के पीछे कुत्ते भौंकते हैं न, तब हाथी पीछे नहीं देखता। वह समझ जाता है कि कुत्ते हैं। सौ-दो सौ कुत्ते हों और किसी हाथी के पीछे भौंक रहे हों तो क्या वह पीछे देखता है कि कौन-कौन भौंक रहा है? ये पुद्गल भाव भी उसी प्रकार के हैं लेकिन अज्ञानी का उससे टकराव हो जाता है, क्योंकि वह हाथी नहीं बना है न! अज्ञानी व्यक्ति तुरंत एकाकार हो जाता है, देर ही नहीं लगती। 'कोई कुछ भी नहीं करने वाला', उसे शूरवीरता कहते हैं। वह पुद्गल और हम हैं चेतन, आत्मा, अनंत शक्ति वाले! प्रश्नकर्ता : वे विचार वगैरह जब आएँगे तब देख लेंगे। दादाश्री : आएगा ही कैसे लेकिन? देख लेने को भी नहीं रहेगा और अगर आएँ तो हमें क्या लेना-देना? वह अलग बिरादरी है, अपनी अलग बिरादरी। बिरादरी अलग, जाति अलग! इसलिए उससे कुछ नहीं होता। यह तो कुछ हो चुका है, ऐसा देखा भी नहीं है। ये तो सिर्फ शंकाएँ हैं और जो शंका होती है, वह भी पुद्गल भाव है। कुछ होगा नहीं और सिर्फ अपना 'वेस्ट ऑफ टाइम एन्ड एनर्जी' है। हाँ, वह यदि कभी चेतन भाव होता तो हरा देता लेकिन ऐसा तो है नहीं। फिर क्या है?! वे जड़ वस्तुएँ हैं, वे चेतन को क्या कर सकती हैं? वे यदि चेतन होती तो बात अलग थी। मन-वचन-काया के तमाम लेपायमान भावों
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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