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________________ ११६ आप्तवाणी - ९ प्रश्नकर्ता : तब क्या करूँ फिर ? दादाश्री : करना क्या है ? ' आपको ' 'चंदूभाई' से कहना है कि, 'शंका-कुशंका मत करना । जो आए वह करना है ।' बस, इतना ही । 'वह' शंका-कुशंका करे तो उसे कहने वाले 'आप' हैं न, साथ के साथ। पहले तो कोई कहने वाला था ही नहीं, इसलिए उलझन में रहते थे। अब तो वह, कहने वाला है न ! वहाँ शूरवीरता होनी चाहिए जहाँ शंका हो वह काम ही शुरू मत करना । जहाँ हमें शंका हो न, वह काम करना ही नहीं चाहिए या फिर वह काम हमें छोड़ देना चाहिए। जहाँ शंका उत्पन्न हो, ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए। संघ यहाँ से अहमदाबाद जाने के लिए निकला, चलने लगा। अंदर कुछ लोग कहेंगे, ‘अरे, शायद बरसात हो जाए तो वापस पहुँच पाएँगे या नहीं, इसके बजाय वापस लौट चलो न !' ऐसी शंका वाले हों तो क्या करना पड़ेगा ? ऐसे दो-तीन लोग हों तो वहाँ से निकाल देने पड़ेंगे। वर्ना पूरी टोली बिगड़ जाएगी । अतः जब तक शंका होती रहे न, तब तक कुछ भी ठीक से नहीं हो सकता । उससे कोई भी काम नहीं हो सकता । बहुत प्रयत्न करे, बहुत पुरुषार्थ करने से अगर वह बदल जाए तो सुधर सकता है। बदल जाए तो अच्छा। सभी खुश होंगे न ! जिसमें शूरवीरता हो, वह अगर कभी फेंकने लगे तो सबकुछ फेंककर चलता बनता है और वह जैसा चाहे वैसा काम कर सकता है । इसलिए शूरवीरता रखनी चाहिए कि 'मुझे कुछ भी नहीं होगा ।' अपने को ज़हर खाना होगा तभी खाएँगे और अगर नहीं खाना हो तो कौन खिला सकता है? हमें कहे, 'अभी गाड़ी टकरा जाएगी तो ?' ड्राइवर यदि ऐसा कहे तो हमें कहना चाहिए, 'रहने दे, तेरी ड्राइविंग बंद कर । उतर जा । बहुत हो चुका।' यानी ऐसे व्यक्ति को छूने भी नहीं देना चाहिए ? शंका वाले के साथ तो खड़े भी नहीं रहना चाहिए। अपना मन बिगड़ जाता है।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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