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________________ ११४ आप्तवाणी-९ हैं। एक तो, प्रत्यक्ष दुःख होता है। दूसरा, उस पर शंका की, उसके बदले में गुनाह लागू होता है, कलम चार सौ अड़तीस लागू हो गई। प्रश्नकर्ता : लेकिन हमें कोई भी काम करना हो या रास्ते पर पुल बनाना हो तो उसके 'सेफ्टी फैक्टर' तो ध्यान में लेने पड़ेंगे न? नहीं लेंगे तो पुल गिर जाएगा। वहाँ पर अगर अजागृति रखकर पुल बना दें, तो ऐसा तो चलेगा ही नहीं न! दादाश्री : वह ठीक है। सभी 'सेफ्टी फैक्टर' रखने चाहिए, लेकिन उसके बाद सेटिंग करते समय फिर से शंका नहीं होनी चाहिए। शंका खड़ी हुई कि दुःख खड़ा होगा। प्रश्नकर्ता : लेकिन कोई भी काम करते हुए कोई व्यक्ति उसमें गलत नहीं करे, उसके बारे में सोचना तो पड़ेगा न? दादाश्री : हाँ, सोचने की सारी छूट है ही! शंका करने की छूट नहीं है। जितना सोचना हो उतना सोच, पूरी रात सोचना हो तब भी सोच, लेकिन शंका मत करना क्योंकि उसका ‘एन्ड' ही नहीं आएगा। शंका 'एन्डलेस' चीज़ है। विचारों का 'एन्ड' (अंत) आएगा। मन थक जाता है न! क्योंकि बहुत सोचने से मन हमेशा थक जाता है इसलिए फिर वह अपने आप ही बंद हो जाता है। लेकिन शंका नहीं थकती। शंका तो ऐसी आती है, वैसी आती है इसलिए तू शंका मत रखना। इस जगत् में शंका करने जैसा अन्य कोई दुःख है ही नहीं। शंका करने से तो पहले खुद का ही बिगड़ता है, उसके बाद सामने वाले का बिगड़ता है। हमने तो पहले से ही ये खोज कर ली है कि शंका से अपना खुद का ही बिगड़ता है। सबकुछ जाने, फिर भी शंका नहीं इसलिए हमने कभी भी किसी पर शंका नहीं की है। हम बारीकी से जाँच करते हैं, लेकिन शंका नहीं रखते। जो शंका रखता है, वह मार खाता है। जानते ज़रूर हैं, लेकिन शंका नहीं रखते। ज़रा सी भी शंका
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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