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आप्तवाणी-९
ये सभी फाइलें हैं। ये कहीं आपकी बेटियाँ नहीं हैं, या आपकी बहुएँ नहीं हैं। ये बहुएँ-बेटियाँ, सभी ‘फाइलें' हैं। फाइलों का समभाव से निकाल करो। अगर लकवा हो जाए न, तब कोई आपका सगा नहीं रहेगा। बल्कि कई दिन हो जाएँगे न, तो लोग सब चिढ़ने लगेंगे। वह लकवेवाला भी मन में समझ जाता है कि सभी चिढ़ रहे हैं। क्या करे फिर?! इन 'दादा' द्वारा दिखाया हुआ मोक्ष सीधा है, एक अवतारी है इसलिए संयम में रहो और फाइलों का समभाव से निकाल करो। बेटी हो या पत्नी हो या कोई और हो, लेकिन सब का समभाव से निकाल करो। कोई किसी की बेटी नहीं होती दुनिया में। यह सब कर्म के उदय के अधीन है। जिसे ज्ञान नहीं मिला है, उसे हम ऐसा कुछ कह नहीं सकते। ऐसा कहेंगे तब तो वह लड़ने को तैयार हो जाएगा।
अब मोक्ष कब बिगड़ेगा? भीतर असंयम हो जाएगा तब! असंयम हो, अपना 'ज्ञान' ऐसा है ही नहीं। निरंतर संयमवाला ज्ञान है। सिर्फ, शंका की कि दुःख आएगा!
इसलिए, एक तो शंका करनी - किसी भी प्रकार से शंकाशील बनना वह सब से बड़ा गुनाह है। नौ बेटियों के बाप को नि:शंक घूमते हुए मैंने देखा है और वह भी भयंकर कलियुग में! और नौ की नौ लड़कियों की शादी हुई। यदि वह शंका में रहा होता तो कितना जी सकता था? इसलिए कभी भी शंका मत करना। शंका करने से खुद को ही नुकसान होता है।
प्रश्नकर्ता : शंका में किस तरह का नुकसान होता है? वह ज़रा समझाइए न!
दादाश्री : शंका, वह दुःख ही है न! प्रत्यक्ष दुःख! वह क्या कम नुकसान है? शंका में गहरा उतरे तो मरणतुल्य दुःख होता है।
प्रश्नकर्ता : वह शूल की तरह रहता है ?
दादाश्री : शूल तो अच्छा है लेकिन शंका में तो उससे भी अधिक दुःख होता है। शूल तो बस इतना ही है कि, यदि कोई दूसरी चीज़ शरीर