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________________ आप्तवाणी - ९ करेंगे।' तब उसने कहा, 'मुझमें टीका करने जैसा है ही क्या ?' तब मैंने कहा, 'दिखाता हूँ, चुप रहना ।' फिर उसकी बेटियों की किताबें लाकर दिखाईं सब। ‘देखो यह, ' कहा। तब उसने कहा, 'हें!' मैंने कहा, 'चुप हो जाओ। किसी की टीका मत करना। मैं जानता हूँ, फिर भी मैं आपके सामने क्यों चुप रहा हूँ? इतना सब आप रौब मारते हो, तब भी मैं चुप क्यों रहा हूँ?' मैं जातना हूँ कि भले ही रौब मारे, लेकिन संतोष रहता है न, उन्हें! लेकिन जब टीका करने लगे तब कहा कि, 'मत करना टीका ।' क्योंकि बेटियों के माँ-बाप होकर हम किसी की बेटी पर टीकाटीप्पणी करें तो वह भूल है । जो बेटियों के बाप नहीं होते, जिनकी बेटियाँ नहीं होतीं, वे ऐसी टीका ही नहीं करता बेचारा । ये बेटी वाले बहुत टीका करते हैं। जबकि तू बेटियों का बाप होकर टीका कर रहा है ? तुम्हें शर्म नहीं आती? ऐसा संशय रखने से कब अंत आएगा ? ९२ आजकल की लड़कियाँ भी बेचारी इतनी भोली होती हैं कि ऐसा मान लेती हैं कि मेरे पिता जी कभी भी मेरी डायरी नहीं पढ़ेंगे। उसके स्कूल की डायरी में पत्र रखती हैं और बाप भी भोले होते हैं, उन्हें बेटी पर विश्वास ही रहता है। पर मैं तो यह सब जानता हूँ कि ये बेटियाँ बड़ी हो चुकी हैं। मैं उसके फादर को इतना ही कहता हूँ कि इसकी शादी करवा देना जल्दी। हाँ, और क्या कहूँ फिर ? सावधान, बेटियों के माँ-बाप एक हमारा खास रिश्तेदार था, उसकी चार बेटियाँ थीं। वह बहुत जागृत था। उसने मुझसे कहा, 'ये लड़कियाँ बड़ी हो गई हैं, कॉलेज में जाती हैं, तो मुझे विश्वास नहीं रहता।' तब मैंने कहा, ‘साथ में जाना। साथ में कॉलेज जाना और कॉलेज में से निकले तब वापस आना । वह तो एक दिन जाएगा, लेकिन दूसरे दिन क्या करेगा ? पत्नी को भेजना।' अरे, विश्वास कहाँ रखना है और कहाँ नहीं रखना उतना भी नहीं समझता ?! हमें यहीं से उसे कह देना चाहिए, 'देख बेटी, हम अच्छे लोग हैं, हम खानदानी हैं, कुलवान हैं।' इस तरह उसे सावधान कर देना । फिर जो हुआ वह करेक्ट । शंका नहीं करनी है । कितने लोग शंका करते
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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