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________________ [२] उद्वेग : शंका : नोंध दादाश्री : उसे बुद्धि से सभी पर्याय दिखाई देते हैं। ऐसा दिखता है कि शायद ऐसा होगा, ऐसे हाथ रख दिया होगा। किसी व्यक्ति ने उसकी ‘वाइफ' पर हाथ रख दिया, तब फिर सारे पर्याय खड़े हो जाते हैं, कि क्या होगा?! और फिर सिलसिला शुरू हो जाता है! अबुध को तो कोई झंझट ही नहीं है, और वे भी वास्तव में अबुध नहीं होते हैं, उनका खुद का संसार चले उतनी उनमें बुद्धि होती है। उसे बाकी कोई झंझट नहीं होती। थोड़ा बहुत होकर फिर बंद हो जाता है। प्रश्नकर्ता : मतलब आप ऐसा कहना चाहते हो कि जो सांसारिक अबुध हैं, जो अभी बुद्धि में डेवेलप नहीं हुए हैं? दादाश्री : नहीं, ऐसे लोग तो बहुत कम होते हैं, मजदूर वगैरह ! प्रश्नकर्ता : लेकिन वे लोग बुद्धिशाली होने के बाद फिर अबुध दशा प्राप्त करेंगे न? दादाश्री : उसकी तो बात ही अलग है न! वह तो परमात्मापद कहलाता है। बुद्धिशाली होने के बाद अबुध होते हैं, वह तो परमात्मापद लेकिन बुद्धिशाली लोगों को यह संसार बहुत तंग करता है। अरे, पाँच बेटियाँ हों और वह मनुष्य बुद्धिशाली हो तो, 'ये बेटियाँ बड़ी हो गई हैं।' अब वे सब जब बाहर जाती हैं, तब सभी पर्याय उसे याद आते हैं। बुद्धि से सबकुछ समझ में आता है, इसलिए उसे सबकुछ दिखाई देता है और फिर वह परेशान होता रहता है। फिर बेटियों को 'कॉलेज' तो भेजना ही पड़ता है और अगर ऐसा हो जाए तो वह भी देखना पड़ता है। और वास्तव में कुछ हुआ या नहीं हुआ, वह बात भगवान जाने, लेकिन वह तो शंका से मारा जाता है! जहाँ हो जाता है, वहाँ उसे पता भी नहीं चलता, इसलिए वहाँ शंका नहीं है उसे और जहाँ नहीं होता है, वहाँ बेहद शंका है। अतः निरा शंका में ही जलता रहता है, और उसे भय ही लगता रहता है। यानी कि शंका हुई कि इंसान मारा जाता है।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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