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________________ [२] उद्वेग : शंका : नोंध कुछ भी नहीं होगा। वह घर पर आए तो उसे समझाना, लेकिन शंका मत करना। शंका तो बल्कि उसे और अधिक पानी छिड़केगी। हाँ, सावधान ज़रूर करना लेकिन कोई भी शंका मत रखना। शंका रखनेवाला मोक्ष खो देता है। यदि आपको मुक्त होना है, मोक्ष में जाना है तो आपको शंका नहीं करनी चाहिए। कोई दूसरा व्यक्ति आपकी पत्नी के गले में हाथ डालकर घूम रहा हो और आपने देख लिया, तो क्या आपको ज़हर खा लेना चाहिए? प्रश्नकर्ता : नहीं, ऐसा किसलिए करूँ? दादाश्री : तो फिर क्या करना चाहिए? प्रश्नकर्ता : थोड़ा नाटक करना पड़ेगा, फिर समझाऊँगा। फिर तो जो करे वह 'व्यवस्थित'। दादाश्री : हाँ, ठीक है। अब आपको 'वाइफ' पर या घर में किसी पर भी ज़रा सी भी शंका नहीं होगी न?! क्योंकि ये सब फाइलें हैं। इसमें शंका करने जैसा क्या है ? जो भी हिसाब होगा, जो ऋणानुबंध होगा, उस हिसाब से ये फाइलें भटकेंगी जबकि आपको तो मोक्ष में जाना है। वह तो भयंकर रोग अब अगर वहाँ पर हमें वहम हो गया, तो वह वहम बहुत सुख देगा? नहीं क्या? प्रश्नकर्ता : अंदर कीड़े की तरह काम करेगा, कुतरता रहेगा। दादाश्री : हाँ, पूरा जागृतकाल उसे खा जाएगा। टी.बी. का रोग! टी.बी. तो अच्छी है कि कुछ समय तक ही असर डालती है, फिर नहीं करती। यानी कि यह शंका तो टी.बी. का रोग है। जिसे वह शंका उत्पन्न हो गई उसमें टी. बी. की शुरुआत हो गई। यानी शंका किसी भी प्रकार से 'हेल्प' नहीं करती, शंका नुकसान ही करती है इसलिए शंका को मूल
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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