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________________ [२] उद्वेग : शंका : नोंध को पाठ पढ़ाते हैं और स्त्रियाँ भी पुरुषों को पाठ पढ़ाती हैं ! फिर भी स्त्रियाँ जीत जाती हैं क्योंकि इन पुरुषों में कपट नहीं है न! इसलिए पुरुष स्त्रियों द्वारा ठगे जाते हैं ! ८५ अतः जब तक ‘सिन्सियारिटी-मॉरेलिटी' थी, तभी तक संसार भोगने लायक था। अभी तो भयंकर दगाखोरी है। हर एक को उसकी 'वाइफ' की बात बता दूँ तो कोई अपनी 'वाइफ' के पास नहीं जाएगा। मैं सब का जानता हूँ, फिर भी कुछ भी कहता नहीं हूँ। हालांकि पुरुष भी दगाखोरी में कम नहीं है लेकिन स्त्री तो निरा कपट का ही कारखाना है! कपट का संग्रहस्थान और कहीं पर भी नहीं होता, सिर्फ स्त्री में ही होता है । ऐसे दगे में मोह क्या ? यह जो संडास है, उसमें हर कोई व्यक्ति जाता है या एक ही व्यक्ति जाता है? प्रश्नकर्ता : सभी जाते हैं । दादाश्री : तो जिसमें सभी जाते हैं, वह संडास कहलाती है। जहाँ पर कई लोग जाते हैं न, वह संडास ! जब तक एक पत्नीव्रत और एक पतिव्रत रहे, तब तक वह बहुत उच्च चीज़ कहलाती है । तब तक चारित्र कहलाता है, नहीं तो फिर संडास कहलाता है । आपके यहाँ संडास में कितने लोग जाते होंगे ? प्रश्नकर्ता : घर के सभी लोग जाते हैं । दादाश्री : एक ही व्यक्ति नहीं जाता है न ? अतः फिर दो जाएँ या सभी जाएँ, लेकिन वह संडास कहलाएगा। यह तो जहाँ होटल आई, वहाँ पर खा लेता है । अरे, खाता-पीता भी है ! इसलिए शंका निकाल देना । शंका से तो हाथ में आया हुआ मोक्ष भी चला जाएगा। अतः आपको ऐसा ही समझ लेना है कि इससे मैंने विवाह किया है और यह मेरी किराएदार है! बस, इतना मन में समझकर
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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