SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७२ आप्तवाणी-९ प्रश्नकर्ता : होता है। दादाश्री : फिर भी लोग शंका रखने में बहुत पक्के हैं। नहीं क्या? हम तो शंका रखते ही नहीं हैं। और शंका पहले से ही बंद कर देते हैं, ताला ही लगा चुके हैं न! जो शंका निकाल देते हैं, वे 'ज्ञानी' कहलाते हैं। इस शंका के भूत से तो पूरा जगत् मर रहा है। कहेगा, 'यहाँ से होकर ऐसे गया था, कल यही अंदर आया था और ले गया था। वही अब इधर से गया वापस।' यों अंदर शंका उत्पन्न हुई। प्रश्नकर्ता : यह आदमी गड़बड़ कर रहा है, उस पर ऐसी शंका हो तो क्या होगा? दादाश्री : गड़बड़ कोई करता ही नहीं है। ऐसी शंका करनेवाला ही गुनहगार है। शंका करने वाले को जेल में डाल देना चाहिए। बाकी, ऐसी शंका करने वाले मार खाते हैं। शंका हो तो मार खाएगा। खुद ही मार खाएगा। कुदरत ही उसे मारेगी और किसी को नहीं मारना पड़ेगा। जगत् किस प्रकार से क्षणभर भी चैन से रह सकता है ?! कितनी तरह के भूत, और शंकाएँ कितनी तरह की! और शंका में दुःख कितना होता होगा! ये सभी जितने भी ताप हैं न, ताप, संताप, परिताप, उत्ताप, वे सभी शंका से उत्पन्न हुए हैं। शंका का समाधान आपको कभी कोई शंका नहीं होती है न? प्रश्नकर्ता : वह तो होती ही है न! दादाश्री : आपको शंका होती है तब आप क्या करते हो? प्रश्नकर्ता : जाँच करते हैं। दादाश्री : जाँच करने से तो और अधिक शंका डालता है। अब यह जो शंका है न, यदि दुनिया में कोई चीज़ ऐसी है, जो कभी भी किसी भी प्रकार से आराधना करने योग्य नहीं है तो वह है शंका! तमाम दुःखों का मूल कारण यह शंका ही है।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy