SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 111
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी - ९ प्रश्नकर्ता : उद्वेग को अजंपा (बेचैनी, अशांति) कह सकते हैं ? दादाश्री : अजंपा तो बहुत अच्छा होता है। अजंपा तो, प्याला गिर जाए तब भी अजंपा होता है। अजंपा तो सरल होता है । उद्वेग तो ऐसा लगता है जैसे सिर में झटके लग रहे हो । जबकि अजंपा तो प्याले गिर जाएँ तो अजंपा और कढ़ापा (कुढ़न, क्लेश) होता रहता है। यह तो, बहुत बड़ा जोखिम हो गया हो तब उद्वेग होता है। 'इमोशनल' हुआ कि उद्वेग शुरू हो जाता है । उद्वेग तो उसे सोने भी नहीं देता न ! ६० प्रश्नकर्ता : लेकिन 'इमोशनल' लोगों को चिंता अधिक होती है न ? दादाश्री : चिंता नहीं, उद्वेग बहुत होता है और वह उद्वेग तो मरने जैसा लगता है। ‘मोशन' अर्थात् वेग में और 'इमोशनल' अर्थात् उद्वेग । प्रश्नकर्ता : अब, वेग भी गति में है न ? दादाश्री : वेग तो निरंतर रहना ही चाहिए । वेग, 'मोशन ' तो रहना ही चाहिए। जीव में वेग तो अवश्य होता ही है और तभी वह 'मोशन ' में रहता है। किसी भी जीव में वेग अवश्य होता है । जो त्रस्त जीव हैं, यानी ऐसे जीव जो त्रस्त हो जाते हैं । यों हाथ लगाते ही भाग छूटते हैं, भाग जाते हैं। जिन्हें भय लगता है, उन सभी में वेग अवश्य होता है लेकिन जो एकेन्द्रिय जीव हैं, ये पेड़-पौधे हैं, उनमें वेग नहीं होता है । उनका वेग अलग प्रकार का होता है लेकिन बाकी सभी जीवों में तो यह वेग रहता ही है । वे वेग में तो रहते ही है, निरंतर 'मोशन ' में। अगर उस सारे वेग को हिलाया तो 'इमोशनल' हो जाता है, वह उद्वेग कहलाता है। गाड़ी अगर 'इमोशनल' हो जाए तो क्या होगा ? प्रश्नकर्ता : नुकसान हो जाएगा । 'एक्सिडन्ट' हो जाएगा और लोग मर जाएँगे। दादाश्री : उसी प्रकार से इस देह में भी अंदर बहुत जीव मर जाते हैं। उनकी जोखिमदारी आती है और फिर खुद के उद्वेग की वजह से दुःख होता है, वह दूसरी जोखिमदारी है ।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy