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________________ [२] उद्वेग : शंका : नोंध उद्वेग ! जो वेग नीचे जाना चाहिए वही वेग ऊपर चढ़ा । सौदा करने के बाद सामने वाले ने मना कर दिया तो, उसमें क्या बिगड़ गया ? सौदा किया ही नहीं था, ऐसा मान लो लेकिन देखो उद्वेग, उद्वेग, उद्वेग ! ५७ ये लोग क्या करते हैं? एक नुकसान होता है तब दो नुकसान खड़े कर देते हैं जबकि 'ज्ञानीपुरुष' एक ही नुकसान होने देते हैं। I प्रश्नकर्ता : यह जो उद्वेग होता है, वह मोह के कारण ही है न ? दादाश्री : 'ये दस हज़ार गए', वह तो उसका मोह है उसके पीछे। एक नुकसान तो हुआ, वह तो हो चुका। अब उसके लिए परेशान क्यों होता है ?! यह तो भाग्य में एक ही नुकसान लिखा हुआ था, लेकिन दूसरा नुकसान किसलिए उठा रहा है ? एक नुकसान उठाना अच्छा है या दो? एक ही। लेकिन ये सभी लोग दो नुकसान उठाते हैं । फिर वे वापस अगले जन्म के लिए वैसे के वैसे ही कर्म बाँधते हैं । एक क्षण भी उद्वेग में क्यों रहें ? उद्वेग तो कितने कर्म बंधवा देता है । एक क्षणभर के लिए भी हम उद्वेग में नहीं रहे हैं कभी भी, यह 'ज्ञान' हुआ तब से। वेग, आवेग और उद्वेग प्रश्नकर्ता : वेग, आवेग और उद्वेग, यह समझाइए । दादाश्री : वेग साहजिक चीज़ है और आवेग असहज है। खुद कर्ता बने तब 'आवेग' होता है जबकि उद्वेग तो, खुद को नहीं करना हो फिर भी हो जाता है। खुद की इच्छा नहीं हो फिर भी उद्वेग हो जाता है, और वह उद्वेग ऐसा उद्वेग है कि सिर फोड़ डाले । सिर फटने लगता है। वेग तो ज्ञानियों में भी होता है, आवेग नहीं होता और उद्वेग तो होता ही नहीं है न! जब तक आवेगवाला है, तब तक, वह कहा नहीं जा सकता कि कब उद्वेग होने लगेगा । हाँ, आवेग की गैरहाज़िरी हुई कि उद्वेग गया। कर्तापद का भान टूटा कि उद्वेग नहीं होगा । फिर भी, उद्वेग भी हिसाब
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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