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। प्रस्तावना ) - पू.आ.श्री हेमचन्द्रसागरसूरिजी म.
पैंतालीस लाख योजन के मनुष्य क्षेत्र में एक साथ किसी अनुष्ठान की आराधना होती हो तो वह है नवपदजी की आराधना और वह भी अनादि अनंत है । यह आराधना शाश्वत है, सनातन है । इसके न आदि का छोर है और न अंत का छोर है, नवपद आराधना यानि समग्रतया संपूर्ण जिनशासन की आराधना ।
नौ दिनों की यह आराधना इन्हीं दिनो में क्यों ?
क्योंकि ये दिन अयन संधि के हैं । उत्तरायण और दक्षिणायन का मिलन काल है, और इस संधिकाल का विशेष प्रभाव है। सामान्य से दुसरे समय में आराधना करो और संधि समय में करो, बहुत फर्क है । जिनशासन में संधिकाल का महत्त्व और प्रभाव बहुत बताया गया है । इस लिए जितने भी संधिकाल है, उन्हे साधने के लिए कोई न कोई अनुष्ठान बताया ही गया है । ऐसा ही एक अनुष्ठान है नवपद-ओली। ___ पिछले कुछ बरसों से ओली के आराधको की संख्या में वृद्धि होती रही है। इससे पूज्य महात्माओं के व्याख्यान की अपेक्षा भी बढी है । इससे प्रवचन में नवपदजी और श्रीपालचरित्र के विषय का विश्लेषण होता है । यूँ तो श्रीपाल चरित्र एक कथा ही है, परन्तु तत्त्वचिंतक पूज्यश्री श्रीपाल-चरित्र के पात्र और घटनाओं के पीछे रहे रहस्य को प्रगट करते हैं । हम तो सोच भी नहीं सकते कि यह घटना इतना सुंदर संदेश देती है । जानने के बाद आश्चर्य भी होता है और अहोभाव भी।
इस विषय में हमारे परम तारक पू.गुरुदेवश्री अभयसागरजी म. की विशेषता :
जब जब पूज्यश्री के नवपद विषयक व्याख्यान और श्रीपाल-मयणा के जीवन-चरित्र की घटनाओं का मर्म-स्फोट होता, उसमें कर्मग्रंथ की बाते सामाजिक रीतियों की बातें और अपने जीवन के कर्तव्यो का अंगुलि-निर्देश सुनने को मिलता तब आँखे विस्मय से छलक उठती, आनंद आता ।