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________________ 6. मयणा (मदना) और सुरसुंदरी श्रीपाल कथा के प्रारंभिक विभागमें दो पात्र है-मयणा और सुरसुंदरी । दोनों बहनें है । मयणा को संस्कृतमें 'मदना' कहा जाता है । दोनों के नाम में रहा गुप्त संदेश समझने जैसा है । मदना कहती है मद-ना, मद-अभिमान, न-नहीं, अर्थात् अभिमान नहीं करुंगी, अभिमान करता हो उसके सामने झुकूँगी नहीं, व्यवहार-मर्यादा नहीं चूकुँगी । मयणा को न तो रुप का अभिमान है, न संपत्ति का अभिमान है, उसके जीवन में है नम्रता, विनय और विवेक । मयणा मर्यादाशील है, वो कहीं चूकती नहीं है। सुरसुंदरी यानि ? सुर-देव, सुंदरी-कन्या, उसने देवकन्या जैसा अपने रुप को मान लिया है । जिससे जाहिर में मर्यादा चकती है । अपने रुप के अनुसार वर पसंद किया है । उसकी इच्छानुसार पिता ने ठाठ-बाट से अरिदमन राजकुमार से शादी करवाई । सुरसुंदरी अपने घर तक भी नहीं पहुंच पाई । लग्न के बाद नगर में प्रवेशोत्सव के लिए नगर के बाहर रात रुके है । सुबह ढोल-शहनाई बजने वाले हैं, अबील-गुलाल उड़ने वाले है, तैयारियाँ परिपूर्ण हो चुकी है परंतु 'न जाण्युं जानकी नाथे' की तरह पहली रात में लुटेरों की आवाज सुनते ही अपनी नववधू को छोड़कर क्षत्रिय होने के बावजूद अरिदमन भाग जाता है । सुरसुंदरी के अरमानों का महल ध्वस्त हो गया । राजरानी बनने का मनोरथ तो कहीं रह गया, और नटकन्या बनना पड़ा। लुटेरे सुरसुंदरी को नटमंडली में बेच देते है, वहाँ नाटक सीखना SS. श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा
SR No.034035
Book TitleShripal Katha Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaychandrasagarsuri
PublisherPurnanand Prakashan
Publication Year2018
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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