________________
दर्शन के प्रसंग से लेकर आज तक सती के वचन का उत्थापन नहीं किया है । आज साथ ले जाने के लिए मना कर रहे हैं । वो कहते है कि, 'माता की सेवा के लिए यहीं रह जाईए ।'' माँ को अकेला छोडने के लिए श्रीपाल का मन राजी नहीं है । बाल्यावस्था में बचाने के लिए राज्य छोडा । बहुत कष्ट सहकर बडा किया, उस माँ को अकेला कैसे छोडा जाए ? माता के प्रति अहोभाव है, अंतर में बहुमान है, माँ का अनन्य उपकार सतत नजर में है। इसलिए मयणा को साथ नहीं ले जाते हुए सेवा की बात करते हैं । मयणा के प्रतिबंधक बनने का प्रश्न मुख्य होता तो बब्बर कुल से मदनसेना और रत्नद्वीप से मदनमंजूषा को साथ क्यों ले जाते ? सिद्धचक्र के प्रभाव से प्रतिबंधकता का प्रश्न श्रीपाल को नहीं है । माँ की सेवा-भक्ति श्रीपाल के अंतर में बसी है । आराधक आत्मा का माता के प्रति बहुमान आदरभाव होना चाहिए । श्रीपाल इस प्रसंग से सीख दे रहे है । दूसरों की मेहनत का लिया नहीं जाता
मयणा को माँ की सेवा में रखकर श्रीपाल अकेले ही हाथ में मात्र तलवार लेकर कमाने के लिए परदेश जाने के लिए निकलते हैं । पहली रात को ही गिरिकंदरा मे साधक मिलता है । वो चंपकवृक्ष के नीचे साधना कर रहा है । बहुत समय हो गया, पर विद्या सिद्ध नहीं हो रही है । श्रीपाल के सिद्धचक्र-प्रभाव से क्षणमात्र में साधना सिद्ध हो गई । वहाँ से दोनों गिरिनितंब के भाग में गए जहाँ उस साधक के गुरु रस सिद्ध कर रहे थे, पर सफल नहीं हो पा रहे थे ।
__ श्रीपाल की दृष्टि के प्रभाव से तुरंत ही रससिद्धि हो गई । साधक श्रीपाल को उपकारी के तौर पर सामने से स्वर्ण देने के लिए तैयार हो गया । रस-सिद्धि से श्रीपाल जितनी चाहे उतनी संपत्ति प्राप्त कर सकते हैं, अपना राज्य भी प्राप्त कर सकते हैं। वो जिस काम के लिए निकले हैं, वो पहली रात में ही पूर्ण हो जाता है । लक्ष्मी सामने से तिलक करने के लिए तैयार है, पर श्रीपाल इनकार करते हैं । साधक आग्रह करता हैं पर श्रीपाल लेने के लिए
श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा