________________
उपादान ( योग्यता) शुद्ध करो उत्थान होगा ही ।
T
जिनालय में दर्शन कर मयणा के साथ गुरुदेव के पास जाते हैं । धर्म क्रिया की जानकारी नहीं होने से मयणा की देखादेखी यंत्रवत् गुरुवंदन करते हैं । गुरुदेव की नजर उंबर की तरफ है, मयणा से तो वे औपचारिक ही पूछते हैं कि यह नररत्न कौन है ? उन्होंने तो अपने आत्मज्ञान से उंबर की आत्मा को पहचान लिया है । आत्मा के सौदागर शुद्ध उपादानवाली आत्मा को क्यों नहीं पहचानेंगे ? उंबर तो मौन है, मानो साधक ही न हो ! मयणा ने सारी बात की, शासन की निंदा की चिंता व्यक्त की, परंतु गुरुदेव क्या करें यदि समय नहीं पका हो तो, योग्य उपादान वाली व्यक्ति नहीं हो तो ? सूरिदेव का ध्यान मयणा की स्थिति और उसकी गंभीर बात से ज्यादा उंबर की योग्यता पर है । मुनिसुंदरसूरि म. सामुद्रिक शास्त्र और भावि भावों के ज्ञाता है, इससे तो मया के बोलने से पहले उंबर को 'नररत्न' कहा । गाँव-गाँव और देश—देश घूमनेवाले उंबर को कोई पहचान नहीं सका, आज एक ने तो पहचान लिया । रत्न जौहरी के हाथ में जाता है तो ही किंमत होती है, बाकी तो कौन आंक सकता है ? रत्न को जौहरी नहीं मिले तब तक रत्न अपना प्रकाश नहीं छिपाता, चमक तो ऐसी ही होती है । उंबर को गुरुदेव नहीं मिले तब तक कहीं भी भटकते रहे, पर गुणप्रकाश कहीं छिपा नहीं, झिलमिलाते ही रहे । उंबर कहते है आत्मगुणों को झिलमिलाते रखो, उपादान शुद्ध करो, कहीं न कहीं तो जौहरी मिल ही जाएगा, धीरज रखिए । पूज्य आचार्य श्री मुनिसुंदरसूरि म. को योग्य समय और उपादान की शुद्धता दिखाई देती है, इससे वे नररत्न को सिद्धचक्र के अनुष्ठान का निर्देश करते है ।
जो भी धर्मक्रिया करनी है, वह योग्य रीति से सीखो ।
पू. आ. श्री मुनिसुंदरसूरि म. ने पूर्व में से उद्धृत कर उंबर - मयणा को सिद्धचक्र का विधान दिया । अश्विन शुक्ला सप्तमी से विधान-आराधना प्रारम्भ करना है । जिसमें अभी देर है । मयणा को विधि-विधान का
श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा