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आचार्य भगवंत का रहस्यमय आशय है ।
सिद्धचक्र की आराधना निर्धन, रोगी अकेला करे तो भी फलती ही । आराधना के लिए बाह्य संपत्ति नहीं, आंतर वैभव की जरुरत है । इस रहस्य को उंबर के माध्यम से आचार्य भगवंत ने उजागर किया है । उंबर राणा का बाल स्वरुप जितना बदसूरत है, अंतर गुण वैभव से उतना ही खूबसूरत है । सिद्धचक्र के परिणाम पाने के लिए संपत्ति नहीं, गुण जरुरी है, जिनका दर्शन उंबर राणा में होता है । मयणा मिलने के बाद ही सिद्धचक्र (धर्म) उंबर को मिला, इससे हम यह मानते हैं कि श्रीपाल कथा में मुख्य पात्र मयणा है । मयणा के कारण उंबर श्रीपाल बने यह स्थूलदृष्टि की विचारणा है । सूक्ष्मदृष्टि या तत्त्वदृष्टि से निदिध्यासन ( चिंतन) किया जाए तो उंबर महान और गुणवान लगेंगे । यह भी आसानी से समझ में आ सकेगा कि सिद्धचक्र के फलने में उंबर की स्वयं की योग्यता थी । सूर्योदय से पहले उजास स्वयंभू होता है, वैसे ही मयणा या धर्म मिलने से पहले की योग्य भूमिका=उपादान की शुद्धि उंबर की खुद की थी । उंबर में प्राथमिक गुणों का भंडार था । मयणा को गुणवान आराधक उंबर मिला तो मयणा सफल और प्रभावक बना सकी इसलिए कथा का नाम 'मयणा कथा' नहीं, ‘श्रीपाल कथा' है । इस कथा में मयणा की अपेक्षा उंबर=श्रीपाल महत्त्वपूर्ण पात्र है । श्रीपाल कथा के वास्तविक रहस्यों को समझने के लिए इतना खयाल जरुर होना चाहिए कि मयणा से मिलने के पहले भी श्रीपाल में गुणसमृद्धि का आत्मवैभव अजब - गजब था । उसे पहचानना जरुरी है । मयणा मिलने के पहले वाला उंबर राणा हमें मूक उपदेश दे रहा है । एकाध उपदेश जीवन में अपना लेंगे तो हमें भी सिद्धचक्र अवश्य फलेगा ।
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वर्तमान में जीना सीखो
उंबर राणा एकदम खराब हालत में है । गाँव गाँव भटक रहा है । हर राज्य के राज दरबार में जाता है पर अपनी दयनीय स्थिति कही दर्शाता नहीं है । अपना पूर्वकाल प्रदर्शित कर कहीं याचना नहीं करता है । भूतकाल
श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा