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परिशिष्ट - २
पूजन अखंड क्यारे बने? (पूजन नक्की थाय त्यारे पूजन पूर्वे वांची अमल करवा योग्य
लेख) तारक परमात्मानी विशिष्ट भक्ति स्वरुप सिद्धचक्र आदि अनेक पूजनो भावभक्तिपूर्वक थइ रह्या छे ते अनुमोदनीय छे. परंतु काळ प्रवाह अने लोक व्यवहारना कारणे विधानोमां प्रवेशेली केटलीक बाबतो विधानोना मूळने खतम करी नाखे छे. परिणामे पूजन भणाव्याना आनंदमां संतोष मानी तेना मूळ फळ तरफ नजर पण जती नथी आ आपणी अज्ञानता छे.
आजे भणावाता पूजनोमां केटलीक बाबते बहु दुर्लक्ष सेवाइ रह्यं छे. ते पैकी पूजन अखंड क्यारे बने ते अंगे विचारणा करवा जेवी छे. मंत्रशास्त्रना नियम प्रमाणे कोइपण विधान अखंडपणे शुद्धिपूर्वक करवामां आवे तो ते फळीभूत थइ शके छे. _आजे भणावाता पूजनोमां सर्व व्यापक पणे खंडित पूजननो दोष लागी रह्यो
छे.
कोइपण मंत्र, विधान के अनुष्ठान प्रारंभथी अंत सुधी अकज व्यक्ति द्वारा थाय ते विधान अखंडित-सळंग बने. ___ कोइपण अनुष्ठानना प्रारंभमां आत्मरक्षा, मंत्रस्नान विगेरे विधानो करवाना होय छे अने पूजा-अनुष्ठानना अंते क्षमापना विधान करी विधानमां दोष लाग्यो होय तेनी माफी मांगवानी विधि होय! प्रारंभथी अंत सुधी आq ओक अखंड विधान ओक ज व्यक्ति द्वारा (आराधक बदलाया वगर) थर्बु जरुरी छे. परिवार के सगां-स्नेहीने लाभ
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