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अवो अर्थ करीओ तो मंत्रशास्त्र पारंगत पू. आ. देवश्री सिंहतिलकसूरी म. अ वर्धमान विधा कल्पमां जणावेल नीचेनो श्लोक समजवा जेवो छे. भूमण्डलेन वेष्टयेत् इदं यंत्र - विधि: पूर्णा ! इदं विधि पूर्णा.
अर्थ : पृथ्वी मंडलथी वेष्टन करेला (विंटळायेला) आ यंत्रनी विधि पूर्ण थइ. (भूमंडलथी वेस्टन करवुं ओटले यंत्रनी चारे बाजु ओक बीजाने छेडा क्रोस करती होय तेवी चार लाइनो (चोरस) करी खूणामां 'ल' अने चार दिशामा 'क्ष' बीज मंत्रनी स्थापना करवी. मंत्रशास्त्रमां आ प्रक्रियाने भूमंडल वेष्टन कहेवाय छे.)
जो 'भूमिना तळीये ज मांडलुं करवानुं' ओवो भूमंडल शब्दनो अर्थ थतो होय तो अहीं आचार्यदेव भूमंडलथी वेष्टिन करवानुं न कह्युं होत... जेम वर्धमान विद्यायंत्रने पृथ्वीमंडलथी वेष्टित करवानुं जणाव्युं छे तेज अर्थमां भूमंडले शब्द द्वारा सप्तमी विभक्तिनो उपयोग करी सिद्धचक्रने पृथ्वीमंडलथी वेष्टित करवानुं जणावेल छे. सप्तमी विभक्तिनो अर्थ आधार अर्थमां पण थाय छे.
अर्थात् मंत्रशास्त्रमां जणावेल स्वरुपवाळा पृथ्वीमंडलमां सिद्धचक्रयंत्रनुं आलेखन करवानुं स्पष्ट जणाव्युं छे. छतां मात्र शब्दशास्त्रना अर्थथी प्रेरित थइ आजे पूजनोमां मांडलुं नीचे बनावी सर्वत्र अविधि थइ रही छे. जेमां विनय धर्मनुं पण खंडन थइ रह्युं छे.
अभिमंत्रित पंचधान्यथी बनावेल मांडलाने अभिमंत्रित करी ( वासक्षेप द्वारा जागृत करी) तेनुं पूजन थाय छे, आथी ते मांडलुं पण पूज्य बने छे. तेज पूजनमां पूजक पूजन करनार के पूजनमां उपस्थित रहेनार आसन के जाजम पर बेसे छे. क्यारेक तो क्रियाकारको के विधिकारको पाटला पर पण बेसे छे तो पूज्य वस्तु करतां पूजक उंचे बेसे तो विनय केवी रीते सचवाय ?
विनयधर्म सचवाय अने विधिपूर्वक पूजनो भणावाय तेवा शुभ आशये चालतुं आ अनुचिंतन आलेखायेलुं छे. शासननी अक महत्तम क्रिया शुद्ध बने तेवा भाव-श्रद्धा साथे विरमुं छं.
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