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अग्नि जलती है। हवा और आग एक नहीं है, कि जितनी तेज हवा होगी, उतनी ही तेज अग्नि भी हो जाएगी। इस प्रकार प्राणवायु प्राण को उत्तेजित करती है। हम जितनी मात्रा में प्राणवायु (ऑक्सीजन) लेंगे, उतना ही प्राण दिशुद्ध होगा. सक्रिय होगा। यदि प्राणवायु नहीं मिलेगी. तो प्राण में उत्तेजना नहीं आएगी. सक्रियता नहीं आएगी। इसका शरीर-शास्त्रीय कारण यह है-हमारे शरीर में रक्त संचार के दो मुख्य साधन हैं-हृदय और फेफड़ा. रक्त का शोधन फेफड़ों में होता है। अशुद्ध रक्त को शुद्ध कर कार्बन-डाई-ऑक्साइड को शरीर से बाहर कर दिया जाएगा और प्राणवायु वाला शुद्ध रक्त शरीर के अन्दर प्रवाहित होगा। अगर प्राणवायु नहीं मिली. तो रक्त विकृत रहेगा और वह सारे शरीर को विकृत कर देगा। प्राणवायु रक्त-शुद्धि का साधन है और शुद्ध रक्त सारे शरीर को गति देने वाला है। प्राण के साथ उसका गहरा संबंध है। प्राणवायु रक्त के माध्यम से प्राण को भी उत्तेजित करती है, सक्रिय करती है।
प्राणवायु का पर्याप्त सिंचन मिलने पर प्राण का पौधा लहलहा उठता है। पूरा सिंचन न मिलने पर वह पौधा कुम्हला जाता है, आदमी निष्प्राण और निष्क्रिय हो जाता है।
प्राणवायु को ठीक से लेने का साधन है-प्राणायाम। प्राणायाम प्राण का आयाम-विस्तार तथा अनुशासन है। सामान्यतः यह रेचक, पूरक और कुम्भक की क्रिया है, किन्तु वस्तुतः यह श्वसन-क्रियाओं का सम्यक नियमन और नियोजन है अर्थात् श्वास-प्रश्वास को व्यवस्थित रूप में नियंत्रित करने से प्राणायाम फलित होता है। सामान्यतः श्वास का पूरक
और रेचन-क्रिया में फेफड़ों का बहुत कम हिस्सा उपयोग में आता है। प्राणायाम द्वारा पूर्ण पूरक और रेचन कर हन फेफड़ों का पूर्ण उपयोग कर सकते हैं।
प्राणायाम वह संजीवनी शक्ति है, जिससे शारीरिक स्वास्थ्य बनता है, रक्त एवं स्नायुमण्डल का शोधन होता है। जब पर्याप्त मात्रा में प्राणवायु पहुंच नहीं पाएगी, तो रक्त का शोधन नहीं होगा और शोधन के अभाव में गदगी जमती जाएगी। शुद्ध रक्त स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है।
तीनों बातें जुड़ी हुई हैं-प्राण, प्राणवायु और प्राणायाम । प्राणायाम के बिना प्राणवायु का सम्यक ग्रहण नहीं होता और प्राणवायु के बिना प्राण का सम्यक उद्दीपन नहीं होता। आखिर हम प्राणायाम पर आ जाते हैं।
प्राणायाम एक इतना महत्त्वपूर्ण साधन है कि इसको सम्यक् जाने बिना
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