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प्रेक्षाध्यान सिद्धान्त और प्रयोग
६८ में होती है। जब इसे संकुचित किया जाता है, यह उदरीय अंगों को भी की ओर दबाती है तथा वक्षीय गुहा के परिमाण को बढ़ाती है।
३. हंसली की मांसपेशियां-हंसली को ऊपर की ओर उठा कर उन मांसपेशियों का संचालन किया जा सकता है। इस क्रिया के द्वारा फफफस के ऊपर के हिस्से में हवा का प्रवेश होता है।
पूरे लम्बे-गहरे अन्तर्श्वसन के लिए उक्त तीनों प्रकार की मांसपेशी-समहो का संयुक्त उपयोग किया जाता है। यह क्रिया एक ही बार में एवं लयबद्ध रूप से की जानी चाहिए। हवा का भीतर प्रवेश निरन्तर होना चाहिए बीच-बीच में हांफना (श्वास तोड़ना) नहीं चाहिए।
पूरे श्वसन के लाभ
कोशिकाओं के सुचारु रूप से संचालन तथा क्षमता-वृद्धि के लिए यह आवश्यक है कि उन्हें पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन उपलब्ध हो। इसलिए सही रूप में श्वास लेना बहुत जरूरी और महत्त्वपूर्ण है; जिससे कि शरीर की प्रत्येक कोशिका को पर्याप्त ऑक्सीजन मिल सके। फुफ्फुसों में वायुओं का आदान-प्रदान भली-भांति तभी हो सकता है, जब कि श्वसन-क्रिया गहरी, पूरी और मंद हो। शरीर-वैज्ञानिकों के अनुसार यह आवश्यक है कि संगृहीत हवा श्वासकोषों में १०-१२ सेकिण्ड तक रहे जिससे कि ऑक्सीजन और कार्बन-डाइ-ऑक्साइड का अधिकतम विनिमय हो सके।
इस प्राथमिक आवश्यकता के अतिरिक्त यह भी जरूरी है कि सम्यक् श्वसन के द्वारा हवा के आवागमन से संपूर्ण फुफ्फुसों की सफाई पूरी तरह हो। अन्धकार, उष्मा एवं आर्द्रता-युक्त फेफड़ों की सफाई ठीक न होने पर वे सूक्ष्म किन्तु खतरनाक कीटाणुओं के प्रजनन के उपयुक्त स्थान बन जाते
यदि श्वसन-क्रिया पूर्णतः वैज्ञानिक रूप से की जाए, जो उसके परिणामस्वरूप फुफ्फुसों में अत्यधिक शक्तिशाली चूषण-क्षमता उत्पन्न की जा सकती है। गहरे और मंद श्वास के द्वारा फुफ्फुसों में यकृत जैसे अवयवों में एकत्रित रक्त को खींचने के लिए एक प्रकार की चूषण-शक्ति पैदा होती है। तनुपट और पसली-पिञ्जर के सम्यक् लयबद्ध स्पंदन पूरे शरीर में होने वाले शिरीय रक्त-संचार को बेहतर और सक्रिय बनाने में योगदान देते हैं। इस प्रकार हृदय और फेफड़ों-इन दोनों संचालन-बलो का सम्यक संयोजन रक्त के परिसंचरण को श्रेष्ठ बना सकता है। ऐच्छिक और सुनियोजित दीर्घश्वास के द्वारा प्राणधारा को प्रभावित किया जा
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