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कायोत्सर्ग
आत्मा के बारे में संदेह, स्वतंत्र चैतन्य के बारे में सन्देह, त्रैकालिक अस्तित्व के बारे में सन्देह इसलिए है कि चंचलता विद्यमान है। चंचलता है, इसीलिए इतने विकल्प पैदा होते हैं, इतने तर्क पैदा होते हैं। उन विकल्पों के अन्धकार में, उन तर्कों के आवरण में, अस्तित्व का प्रश्न धुंधला हो जाता है और व्यक्ति के मन में संदेह पैदा हो जाता है। यदि यह बुद्धि का व्यायाम नहीं होता, यदि यह तर्क नहीं होता और इन सबको संचालित करने वाली यह चंचलता नहीं होती, तो अस्तित्व के बारे में कभी सन्देह पैदा नहीं होता। तर्क वास्तविकता पर पर्दा डाल देता है, सचाई को आवृत कर देता है। मनुष्य के मन में ऐसा विकल्प उठता है कि सत्य तिरोहित हो जाता है, पर्दे के पीछे चला जाता है। इस चंचलता के कारण यह घटना घटित होती है, अपने अस्तित्व का व्यक्ति को पता नहीं चलता। चंचलता का एक काम यह है कि आदमी को अपने अस्तित्व का पता न चले, अज्ञान बना रहे।
चंचलता का दूसरा काम है-अपने दुःख का पता न चले । दुःख है, पर पता नहीं चलता। व्यक्ति मानता नहीं कि दुःख है। 'दुःख है' यह कहता है, दुःख भोगता है, पाता है, अनुभव करता है, फिर भी इतनी जल्दी भूल जाता है कि मानो दुःख हुआ ही न हो। यह चंचलता नहीं होती, तो ऐसा नहीं होता। चंचलता के कारण व्यक्ति को अपने दुःख का, कमजोरी का, शक्तिहीनता का, अज्ञान का पता नहीं चलता। चंचलता का चक्रव्यूह कैसे तोड़ें ?
साधना का सबसे पहला चरण है-कायोत्सर्ग-शरीर को स्थिर करना। इसका अर्थ है-शरीर की चंचलता को समाप्त करना। साधना का प्रारम्भ कायोत्सर्ग से होता है। कायोत्सर्ग का एक चरण है-शरीर को बिलकुल स्थिर, निश्चल और शांत कर बैठ जाना और कुछ भी नहीं करना। ___लोगों ने कायोत्सर्ग को बहुत ही सीमित अर्थ में समझा है-कायोत्सर्ग अर्थात् शरीर का शिथिलीकरण । शरीर को पूरा शिथिल कर दो, कायोत्सर्ग हो गया। यह अर्थ पूरा नहीं है। यह केवल पचीस प्रतिशत अर्थ है कायोत्सर्ग का। पचीस प्रतिशत अर्थ है-सहिष्णुता का और पचास प्रतिशत अर्थ है-अभय। कायोत्सर्ग त्रिमूर्ति है। यह तीन मूर्तियों से बना है। सहिष्णुता
कायोत्सर्ग का एक तत्त्व है-सहिष्णुता–क्षान्ति। साधक कायोत्सर्ग
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