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प्रेक्षाध्यान : आधार और स्वरूप श्वास-प्रेक्षा
श्वास शरीर में चलने वाली चयापचय की क्रियाओं का अभिन्न अंग है।
श्वास और प्राण, श्वास और मन-अटूट कड़ी के रूप में काम करते हैं। मन को हम सीधा नहीं पकड़ सकते। प्राण की धारा को सीधा नहीं पकड़ा जा सकता। किन्तु मन को पकड़ने के लिए प्राण को पकड़ें और प्राण को पकड़ने के लिए श्वास को पकड़ें। श्वास-परिवर्तन के द्वारा हम मानसिक विकास कर सकते हैं। चित्त को एकाग्र करने का एक सरल और सूक्ष्म उपाय है-श्वास-प्रेक्षा।
मन की शांत स्थिति या एकाग्रता के लिए श्वास का शांत होना बहुत जरूरी है। शांत श्वास के दो रूप मिलते हैं-१. सूक्ष्म-श्वास-प्रश्वसा, २. मन्द दीर्घ श्वास-प्रश्वास ।
कायोत्सर्ग में श्वास-प्रश्वास का निरोध नहीं किया जाता, किंतु उसे सूक्ष्म कर दिया जाता है। प्राणवायु को मंद-मंद लेना चाहिए और मंद-मंद छोड़ना चाहिए। इसे ही दीर्घ-श्वास या मन्द श्वास-प्रश्वास कहा जाता है।
श्वास-विजय या श्वास-नियंत्रण के बिना ध्यान नहीं हो सकतायह एक सचाई है।
हम श्वास लेते समय 'श्वास ले रहे हैं। इसी का अनुभव करें, यही स्मृति रहे; मन किसी अन्य प्रवृत्ति में न जाए, वह श्वासमय हो जाए, उसके लिए समर्पित हो जाए। श्वास की भाव-क्रिया ही श्वास-प्रेक्षा है। यह नथुनों के भीतर की जा सकती है, श्वास के पूरे गमनागमन पर भी की जा सकती है। श्वास के विभिन्न आयामों और विभिन्न रूपों को देखा जा सकता है।
श्वास-प्रेक्षा के अनेक प्रयोग हैं-दीर्घश्वास-प्रेक्षा, समवृत्तिश्वास-प्रेक्षा आदि।
दीर्घश्वास-प्रेक्षा-प्रेक्षा-ध्यान का अभ्यास करने वाला सबसे पहले श्वास की गति को नियंत्रित करता है। वह श्वास को लम्बा, गहरा और लयबद्ध बना देता है। सामान्यतः आदमी एक मिनट में १५-१७ श्वास लेता है; दीर्घश्वास-प्रेक्षा के अभ्यास से यह संख्या घटाई जाती है। साधारण अभ्यास के बाद यह संख्या एक मिनट में १० से कम तक की जा सकती है और विशेष अभ्यास के बाद उसे और अधिक कम किया जा सकता है। श्वास को मन्द या दीर्घ करने के लिए तनपुट (Diaphragm) की मांसपेशियों का समुचित उपयोग किया जाता है। श्वास छोड़ते समय पेट की मांसपेशियां सिकुड़ती हैं और लेते समय वे फूलती हैं।
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