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प्रेक्षाध्यान : आधार और स्वरूप
____ कायोत्सर्ग का अर्थ है-शरीर का व्युत्सर्ग और चैतन्य की जागृति । प्रयोग में इसका अर्थ है-शरीर की बाह्य स्थूल प्रवृत्तियों का निरोध, सभी ऐच्छिक (कंकालीय) मांसपेशियों की शिथिलता एवं चयापचय जैसी सूक्ष्म आंतरिक क्रियाओं का मन्दीकरण। इस शारीरिक स्थिति में मानसिक तनाव का विसर्जन होता है। ___कायोत्सर्ग-शरीर की स्थिरता और शिथिलिता मानसिक एकाग्रता की पहली शर्त है। चित्त की स्थिरता के लिए शरीर की स्थिरता अनिवार्य है। इसलिए प्रेक्षा-ध्यान का पहला चरण कायोत्सर्ग है, जो सभी प्रकार से किये जाने वाले प्रेक्षा-ध्यानों के प्रारम्भ में ही किया जाता है।
पूरे शरीर का कायोत्सर्ग करने के बाद स्वरयंत्र का कायोत्सर्ग करना आवश्यक है। हमारी विचारधारा का उद्गम स्वरयंत्र की चंचलता से होता है। जितनी स्वरयंत्र की चंचलता उतनी ही चित्त की चंचलता। स्वरयन्त्र का सम्पूर्ण शिथिलीकरण करने से अन्तर्मन की साधना होती है। मन की चंचलता भी अपने आप समाप्त हो जाती है। __ध्यान के पहले चरण के अतिरिक्त भी कायोत्सर्ग का अभ्यास स्वतंत्र रूप से दीर्घकाल तक तय किया जा सकता है। यदि कोई कायोत्सर्ग के प्रयोग की विधि को सीख कर प्रतिदिन इसका नियमित अभ्यास करता रहे तो वह किसी भी स्थिति में तनाव-मुक्त, शांत और अविचलित रह सकता है।
___ पूरा शिथिलीकरण सध जाने पर चेतना और शरीर की पृथक-पृथक अनुभूति की जाती है, जिससे अनुभूति के स्तर पर "भेद-विज्ञान” का अभ्यास होता है। शारीरिक और मानसिक तनाव से मुक्ति पाने के लिए कायोत्सर्ग का अभ्यास बहुत उपयोगी है। दो घंटे तक सोने से शरीर एवं मांसपेशियों को जो विश्राम मिलता, उतना विश्राम आधे घंटे तक विधिवत् कायोत्सर्ग करने से मिल जाता है; बल्कि उससे अधिक विश्राम मिल जाता है। यह तनाव-जनित अनेक प्रकार की मनःकायिक बीमारियों का निर्दोष एवं सक्षम उपाय है। अन्तर्यात्रा
अन्तर्यात्रा हो यदा, चंचल चित्त प्रशांत । अन्तर्यात्रा से सदा, बनता नर निर्धान्त ।। भीतर हो जब चेतना, भासित सहज स्वभाव ।
रहे निरन्तरता अगर, हट जाता परभाव।। प्रेक्षाध्यान का दूसरा चरण है-अन्तर्यात्रा। ध्यान की साधना में
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