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प्रेक्षाध्यान सिद्धान्त और प्रयोग • आसन के अभ्यास के लिए स्थान साफ होना चाहिए। वायुमंडल
शुद्ध होना चाहिए। अभ्यास के समय वस्त्र अधिक नहीं पहनने चाहिए। गंजी, जंघिया आदि तंग न हों। आसन एवं प्रणायाम के तत्काल बाद नाश्ता नहीं करना चाहिए। नाश्ते में पेय पदार्थ के अतिरिक्त खाना लाभदायक नहीं होगा। प्रारम्भ में हलके आसनों से ही शुरुआत करनी चाहिए। आसनों के अभ्यास में शीघ्रता नहीं करके धीरे-धीरे शांति से क्रमबद्ध तरीके से ही अभ्यास किया जाना चाहिए। प्रत्येक आसन के बाद १ मिनट का कायोत्सर्ग करके ही दूसरा आसन प्रारम्भ करना चाहिए। आसन प्रारम्भ करने पर आने वाले २-४ दिन शरीर में हल्का-सा दर्द महसूस हो सकता है। इससे घबराकर आसन करना छोड़ना नहीं चाहिए। धीरे-धीरे दर्द अपने आप चला जाएगा। अभ्यास प्रारम्भ करने के पूर्व मोटी दरी और उस पर कम्बल बिछा लेना चाहिए। किसी भी आसन को केवल एक ओर करके ही नहीं छोड़ देना चाहिए। जैसे दायीं ओर झुककर कोई अभ्यास किया है तो बायीं ओर का अभ्यास भी पूरा करना चाहिए। किसी के शरीर की कोई हड्डी किसी कारण पहले टूटी हुई हो तो ऐसे व्यक्ति को उस हड्डी को प्रभावित करने वाला कठिन आसन नहीं करना चाहिए। आसनों का अभ्यास करते समय मन प्रसन्न रहना चाहिए। मस्तिष्क शांत रहना चाहिए। किसी भी प्रकार की चिंता या भय नहीं रहना चाहिए। अभ्यास के बाद ऐसा महसूस होना चाहिए कि शरीर ने कुछ श्रम किया है। तभी शरीर हलका-फुलका-फुर्तीला एवं ताजगीयुक्त प्रतीत होगा। कुछ आसन ऐसे हैं जिनके अभ्यास के समय श्वास की गति को भीतर या बाहर रोका जाता है। अतः अभ्यास के समय श्वास की गति का उसी के अनुसार ध्यान रखना चाहिए। यदि आसन करते समय पसीना आ जाए तो उसे कपड़े से पोंछना नहीं चाहिए। कपड़े से पोंछने के बजाय दोनों हाथों से
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