________________
प्रेक्षाध्यान सिद्धान्त और प्रयोग
से मत देखो।
१५४ देखो। संस्कार की दृष्टि से मत देखो। काल्पनिक दृष्टि से मत केवल सचाई को देखो, वास्तविकता को देखो। यथार्थ को देखो। सत्य है, जो घटना घटित हो रही है, उसी को देखो। अनप्रेक्षा का है-सत्य के प्रति अनुपेक्षा अर्थात् यथार्थ के प्रति अनुप्रेक्षा, वस्तु के पर अनपेक्षा। उधारी धारणा से काम मत लो, किंतु जो घटना है, जो वास्तविकता है, जो सचाई है, उसी को देखो। इस प्रकार अनुप्रेक्षा की तात्पर्य है कि हम अपनी धारणाओं को एक बार निकाल दें। अपनी पूर्व-मान्यताओं को छोड़ दें और फिर जो सचाई है, यथार्थ है, उसको देखें। प्रेक्षाध्यान पद्धति की अनुप्रेक्षा पद्धति में इस अनुप्रेक्षा का अभ्यास किया जाता है कि हम रूढ़ियों को, धारणाओं को छोड़कर, वास्तव में सचाई को नहीं देखता। वह सबसे पहले अपनी धारणाओं का चश्मा लगा लेता है
और बाद में देखता है। यदि वह ठीक नहीं जचता है, तो वह उसे तोड़ने-मरोड़ने का प्रयत्न करता है।
अनुप्रेक्षा का सिद्धांत सत्य के लिए समर्पित हो जाने का सिद्धांत है। सत्य के लिए पूर्णरूपेण समर्पित हो जाओ। अपनी किसी भी धारणा को महत्त्व मत दो। जो सचाई है उसे ग्रहण करो, स्वीकार करो यह है अनुप्रेक्षा।
सुना होगा, हिमालय के बर्फ पर साधक नग्न होकर बैठा है। चारों ओर बर्फ ही बर्फ है। वह गर्मी का प्रयोग आरम्भ करता है। घंटा बीतता है और साधक के शरीर से पसीना चूने लगता है। वर्फ पर पसीना चूने लग जाता है। यह प्राकृतिक घटना नहीं है। यदि प्राकृतिक घटना होती, तो एक ही आदमी के शरीर से पसीना नहीं चूता। वहां जितने आदमी होंगे, सबके शरीर से पसीना चूएगा। पर एक ही आदमी के शरीर से पसीना चूता है और सब सर्दी में ठिठुरते हैं। यह प्राकृतिक घटना नहीं है। यह ध्वनि का प्रयोग है, संकल्प का प्रयोग है और भावना का प्रयोग है। यह भावनात्मक परिवर्तन है, प्राकृतिक परिवर्तन नहीं है।
गर्मी के दिन हैं। भयंकर गर्मी पड़ रही है। लूएं चल रही हैं। साधक सर्दी की भावना करता है। सर्दी का संकल्प करता है और उसके शरार में सर्दी व्याप्त हो जाती है। वह ठिठुरने लगता है। वह कंबल ओढ़ता है, फिर भी ठिटुरन समाप्त नहीं होती। यह प्राकृतिक परिवर्तन नहीं है, भावनात्मक परिवर्तन है।
।
Scanned by CamScanner