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अनुप्रेक्षा
वैज्ञानिक आधार मनोविज्ञान में यह सिद्धांत निरूपित हुआ है कि जो संवेग बार-बार उपयोग में आते हैं, वे स्थाई भाव में बदल जाते हैं और अनेक स्थाई भाव मिलकर चरित्र का निर्माण करते हैं। जैसे स्थाई भाव होते हैं, वैसे ही मनुष्य की इच्छाएं होती हैं। सिग्मण्ड फ्रायड नामक मनोवैज्ञानिक ने यह सिद्धांत निरूपित किया कि इच्छाओं के दमन से मानसिक बीमारियां उत्पन्न होती हैं। जब कोई व्यक्ति अपनी इच्छा का दमन करता है, तो वह इच्छा उसके मन के एक हिस्से-अवचेतन में जाकर शरण ले लेती है। मन के तीन भाग होते हैं-(१) चेतन (Consicious) (२) अर्ध चेतन या अवचेतन (subconscious) (३) अचेतन (unconsicious) | जो इच्छा अपूर्ण रह जाती है, वह अवचेतन मन में चली जाती है। वह व्यक्ति स्वप्नों के माध्यम से उस इच्छा की पूर्ति करता है। ऐसी अनेक दमित इच्छाएं मनोरोग पैदा कर देती हैं।
इस तरह स्वप्नों के विश्लेषण से रोग के कारण का पता चलता है और उसका उपचार सिग्मण्ड फ्रायड, फ्रेन्ज मेस्मर आदि ने 'सम्मोहन' (hypnotism) के प्रयोग से उसमें अवचेतन मन में गई हुई इच्छा का निरसन या रूपान्तरण करने की कोशिश की। सम्मोहन के द्वारा भावना का रूपांतरण करने की इस विद्या ने यूरोप में तहलका मचा दिया। सम्मोहन के माध्यम से शरीर को गहरा शिथिल किया जाता है और उसके बाद जो भी भावना पहुंचानी होती है, रोगी के मन में गहराई तक पहुंचाई जाती है। पुरानी अतृप्त इच्छा का स्थान नई भावना ले लेती है और रोगी स्वस्थ हो जाता है।
सुप्रसिद्ध मनश्चिकित्सक जंग ने शरीर को शिथिल-अवस्था में लाने के लिए “स्वतः सूचना” (auto-suggestion) का प्रयोग किया। स्वतः सूचना द्वारा अपने शरीर को शिथिल अवस्था में लाकर उसमें, ‘भावना' का प्रयोग किया और व्यक्ति निरोग हो गया। 'सम्मोहन' के बदले 'स्व-सम्मोहन
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