________________
Verse 31
यः परात्मा स एवाहं योऽहं स परमस्ततः । अहमेव मयोपास्यो नान्यः कश्चिदिति स्थितिः ॥३१॥
अन्वयार्थ - (यः) जो (परात्मा) परमात्मा है ( स एव ) वह ही ( अहं) मैं हूँ और (यः) जो स्वानुभवगम्य ( अहं) मैं हूँ (स) वही (परमः) परमात्मा है (ततः) इसलिए – जब परमात्मा और आत्मा में अभेद है ( अहं एव) मैं ही ( मया) मेरे द्वारा (उपास्यः) उपासना किये जाने के योग्य हूँ (कश्चित् अन्यः न) दूसरा कोई मेरा उपास्य नहीं है (इति स्थितिः) इस प्रकार ही आराध्य-आराधक भाव की स्थिति है।
That pure-soul (paramātmā) is nothing but I'; that I' is nothing but the pure-soul (paramātmā). As 'I' and the pure-soul (paramātmā) are one and the same, 'I' alone is to be adored by me, no one else. This is the Truth.
........................
53