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Samādhitantram
उत्पन्नपुरुषभ्रान्तेः स्थाणौ यद्वद्विचेष्टितम् । तद्वन्मे चेष्टितं पूर्वं देहादिष्वात्मविभ्रमात् ॥२१॥
अन्वयार्थ - (स्थाणौ) स्थाणु (वृक्ष का दूँठ) में (उत्पन्नपुरुषभ्रान्तेः) उत्पन्न हो गई है पुरुषपने की भ्रान्ति जिसको – ऐसे व्यक्ति की (यद्वत् ) जिस प्रकार (विचेष्टितम् ) विकृत अथवा विपरीत चेष्टा होती है (तद्वत् ) उसी प्रकार की (देहादिषु) शरीरादिक परपदार्थों में (आत्मविभ्रमात् ) आत्मा का भ्रम होने से (पूर्वं ) पूर्व में - आत्मज्ञान से पहले ( मे ) मेरी (चेष्टितं ) चेष्टा थी।
My exertion in the past - when I had mistaken the soul for the body - was misdirected like the exertion of a person who has mistaken the tree stump for a man.
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