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________________ ( viii ) तथा निदेशक श्री लीलाधर मंडलोई जी ने इसके प्रकाशन हेतु स्वीकृति प्रदान की। तथा श्री संजय दुबे जी ने इसका सुन्दर संयोजन करवाया। श्री हीरालाल जी तथा उनके सुपुत्र विशेष कुमार ने इसके टंकण कार्य में हमारा सहयोग किया। मैं उपरोक्त सभी लोगों के प्रति हृदय से धन्यवाद, कृतज्ञता, आभार ज्ञापित करता हूँ। अन्त में मैं बस इतना कहना चाहता हूँ कि इस ग्रन्थ में जो कुछ भी है वह सब आचार्य प्रभाचन्द्र का है मेरा कुछ भी नहीं है। मैंने मात्र उनके ग्रन्थ को सर्वजन सुलभ करने की दृष्टि से उसका सार-संक्षेप यहाँ प्रस्तुत करके मात्र उसे सम्पादित किया है यह कोशिश भी मैंने पूर्वाचार्यों की कृपा और गुरुजनों के आशीर्वाद से अपने स्वाध्याय और अभ्यास को और अधिक पुष्ट करने के उद्देश्य से की है। इसमें त्रुटियाँ भी स्वाभाविक हैं। यदि कोई भूल हो गयी हो तो विनम्र निवेदन है कि उस ओर मेरा ध्यान अवश्य आकृष्ट करेंगे ताकि आगामी संस्करण में उसे सुधार सकें। आचार्य प्रभाचन्द्र के ही निम्नलिखित श्लोकों के साथ अपनी भी भावधारा स्थापित करके मैं यह ग्रन्थ आपके स्वाध्याय हेतु प्रस्तुत कर रहा हूँ ये नूनं प्रथयन्ति नोऽसमगुणामोहादवज्ञां जनाः, ते तिष्ठन्तु न तान्प्रति प्रयतितः प्रारभ्यते प्रक्रमः । संतः सन्ति गुणानुरागमनसो व धीधनास्तान्प्रति, प्रायः शास्त्रकृतो यदत्र हृदये वृत्तं तदाख्यायते ॥ त्यजति न विवधानः कार्यमुद्विज्य धीमान् खलजनपरिवृत्तेः स्पर्धते किन्तु तेना किमु न वितनुतेऽर्कः पद्मबोधं प्रबुद्धःस्तवपद्धति विधायी शीतरश्मिर्यवीह ॥ बसन्तपञ्चमी 1/02/2017 - डॉ. अनेकान्त कुमार जैन [email protected]
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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