________________ 7/1 स्वद्रव्यादिचतुष्टयापेक्षया। स्यान्नास्ति परद्रव्यादिचतुष्टयापेक्षया। स्यादुभयं क्रमार्पितद्वयापेक्षया। स्यादवक्तव्यं सहार्पितद्वयापेक्षया। एवमवक्तव्योत्तरास्त्रयो भङ्गाः प्रतिपत्तव्याः। 22. कस्मात्पुनर्नयवाक्ये प्रमाणवाक्ये वा सप्तैव भङ्गाः सम्भवन्तीति चेत्? प्रतिपाद्यप्रश्नानां तावतामेव सम्भवात्। प्रश्नवशादेव हि सप्तभङ्गीनियमः। सप्तविध एव प्रश्नोपि कुत इति चेत्? सप्तविधजिज्ञासासम्भवात्। सापि सप्तधा कुत इति चेत्? सप्तधा संशयोत्पत्तेः। सोपि सप्तधा कथमिति चेत्? तद्विषयवस्तुधर्मस्य सप्तविधत्वात्। तथा हि-सत्त्वं तावद्वस्तुधर्मः; 4. सह अर्पित स्वपरद्रव्यादि की अपेक्षा स्यात् अवक्तव्य जीवादि वस्तु। 5. परद्रव्यादि और अक्रम की अपेक्षा स्यात् जीवादि वस्तु नास्ति अवक्तव्य। 6. स्वद्रव्यादि और परद्रव्यादि तथा अक्रम की अपेक्षा स्यात् जीवादिवस्तु अस्ति नास्ति अवक्तव्य। इस प्रकार प्रमाण सप्तभनी को समझना चाहिए। 22. पुनः प्रश्न होता है कि नयवाक्य और प्रमाणवाक्य में सात ही भंग क्यों होते हैं? उसका समाधान देते हुये आचार्य प्रभाचन्द्र कहते हैं कि प्रतिपाद्यभूत जो शिष्यादि हैं उनके प्रश्न सात ही होने से प्रमाण वाक्य तथा नय वाक्य में सात ही भंग होते हैं। प्रश्न के वश से सप्तभङ्गी का नियम प्रसिद्ध है। प्रश्न- प्रतिपाद्यों के सात ही प्रश्न क्यों हैं? उत्तर- सात प्रकार से जानने की इच्छा होने के कारण सात ही प्रकार के प्रश्न होते हैं। प्रश्न- जानने की इच्छा भी सात प्रकार की ही क्यों है? उत्तर- सात प्रकार का संशय होने के कारण सात जिज्ञासा हैं। प्रश्न- संशय भी सात प्रकार का ही क्यों होता है? प्रमेयकमलमार्तण्डसारः: 323