________________ 7/1 तदप्यसाम्प्रतम्: 'देवदत्तः कटं करोति' इत्यत्रापि कर्तृकर्मणोदेवदत्तकटयोरभेदप्रसङ्गात्। 8. तथा, 'पुष्यस्तारका' इत्यत्र लिङ्गभेदेपि नक्षत्रार्थमेकमेवाद्रियन्ते, लिङ्गमशिष्यं लोकाश्रयत्वात्तस्य; इत्यसङ्गतम्; 'पटः कुटी' इत्यत्राप्येकत्वानुषङ्गात्। 9. तथा, 'आपोऽम्भः' इत्यत्र संख्याभेदेप्येकमर्थं जलाख्यं मन्यन्ते, संख्याभेदस्याऽभेदकत्वाहुर्वादिवत्। तदप्ययुक्तम्: 'पटस्तन्तवः' इत्यत्राप्येकत्वानुषङ्गात्। 10. तथा 'एहि मन्ये रथेन यास्यासि न हि यास्यसि यातस्ते पिता' इति साधनभेदेप्यर्थाऽभेदमाद्रियन्ते “प्रहासे मन्यवाचि युष्मन्मन्यतेउन्होंने अभेद प्रतीति मानी है किन्तु वह ठीक नहीं यदि कर्तृकारक और कर्मकारक में अभेद माना जाय तो "देवदत्तः कटं करोति" इस वाक्य में स्थित देवदत्त कर्ता और कट कर्म इन दोनों में अभेद मानना पड़ेगा। 8. तथा पुष्पः तारकाः इन पदों में पुलिंग स्त्रीलिंग का भेद होने पर भी व्याकरण पंडित इनका नक्षत्र रूप एक ही अर्थ ग्रहण करते हैं। वे कहते हैं कि लिंग अशिष्य है-अनुशासित नहीं है, लोक के आश्रित है अर्थात् लिंग नियमित न होकर व्यवहारानुसार परिवर्तनशील है किन्तु यह असंगत है, लिंग को इस तरह माने तो पटः और कुटी इनमें भी एकत्व बन बैठेगा। 9. तथा “आपः अम्भः" इन दो शब्दों में संख्या भेद रूप बहुवचन और एक वचन का भेद होने पर भी वे इनका जल रूप एक अर्थ मानते हैं। वे कहते हैं कि संख्या भेद होने से अर्थ भेद होना जरूरी नहीं है जैसे गुरुः ऐसा पद एक संख्या रूप है किन्तु सामान्य रूप से यह सभी गुरुओं का द्योतक है अथवा कभी बहुसन्मान की अपेक्षा एक गुरु व्यक्ति को “गुरवः" इस बहुसंख्यात पद से कहा जाता है। सो वैयाकरण का यह कथन भी अयुक्त है। ____ 10. तथा “ऐहि मन्येरथेन यास्यसि न हि यास्यसि यातस्ते पिता" [आओ तुम मानते होंगे कि मैं रथ से जाऊँगा किन्तु नहीं जा प्रमेयकमलमार्तण्डसारः: 313