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________________ 6/73 "तत्त्वाध्यवसायसंरक्षणार्थं जल्पवितण्डे बीजप्ररोहसंरक्षणार्थं कंटकशाखावरणवत्"20 इति। 65. तदप्यसमीचीनम्: वादस्याविजिगीषविषयत्वासिद्धेः। तथाहि-वादो नाविजिगीषुविषयो निग्रहस्थानवत्त्वात् जल्पवितण्डावत्। न चास्य निग्रह स्थानवत्त्वमसिद्धम्; 'सिद्धान्ताविरुद्धः' इत्यनेनापसिद्धान्तः, 'पञ्चवयवोपपन्नः' इत्यत्र पञ्चग्रहणात् न्यूनाधिके, अवयवोपपन्नग्रहणाद्धेत्वाभासपञ्चक चेत्यष्टनिग्रहस्थानानां वादे नियमप्रतिपादनात्। 65. जैन- यह कथन ठीक नहीं है, वाद को जो आपने विजिगीषु पुरुषों का विषय नहीं माना वह बात असिद्ध है, देखिये-अनुमान प्रसिद्ध बात है कि- वाद अविजिगीषु पुरुषों का विषय नहीं होता, क्योंकि वह निग्रह स्थानों से युक्त है, जैसे जल्प वितंडा निग्रहस्थान युक्त होने से अविजिगीषु पुरुषों के विषय नहीं हैं। वाद निग्रहस्थान युक्त नहीं हैं यह तो बात है नहीं, क्योंकि आप यौग के यहाँ वाद का जो लक्षण पाया जाता है उससे सिद्ध होता है कि वाद में आठ निग्रहस्थान होते हैं, अर्थात् 'प्रमाणतर्कसाधनोपालंभः सिद्धान्ताविरुद्धः पंचावयवोपपन्नः, पक्ष प्रतिपक्षपरिग्रहो वादः" ऐसा वाद का लक्षण आपके यहाँ माना है, इस लक्षण से रहित यदि कोई वाद का प्रयोग करे तो निग्रहस्थान का पात्र बनता है। सिद्धान्त अविरुद्ध वाद न हो तो अपसिद्धान्त नाम का निग्रहस्थान होता है, अनुमान के पाँच अवयव ही होने चाहिये ऐसा वाद का लक्षण था। उन पाँच अवयवों से कम या अधिक अवयव प्रयुक्त होते हैं तो क्रमशः न्यून और अधिक ऐसे दो निग्रह स्थानों का भागी बनता है एवं पाँच हेत्वाभासों में से जो हेत्वाभास युक्त वाद का प्रयोग होगा वह वह निग्रहस्थान आयेगा इस तरह पाँच हेत्वाभासों के निमित्त से पाँच निग्रहस्थान होते हैं ऐसा यौग के यहाँ बताया गया है अतः जल्प और वितंडा के समान वाद भी निग्रहस्थान युक्त होने से विजिगीषुओं के बीच में होता है ऐसा सिद्ध होता है। 20. न्यायसूत्र 4/2/50 292:: प्रमेयकमलमार्तण्डसारः
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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