________________ 7/1 319 प्रमेयकमलमार्तण्डसारः गोचरात् ऋजुसूत्रोपि तत्पूर्वको वर्तमानार्थगोचरतयाल्पविषय एव। कारकादिभेदेनाऽभिन्नमर्थं प्रतिपद्यमानादृजुसूत्रतः तत्पूर्वक : शब्दनयोप्यल्पविषय एव तद्विपरीतार्थगोचरत्वात्। शब्दनयात्पर्यायभेदेनार्थाभेदं प्रतिपद्यमानात् तद्विपर्ययात् तत्पूर्वकः समभिरूढोप्यल्पविषय एव। समभिरूढतश्च क्रियाभेदेनाऽभिन्नमर्थं प्रतियतः तद्विपर्ययात् तत्पूर्वक एवम्भूतोप्यल्पविषय एवेति। ____19. नन्वते नयाः किमेकस्मिन्विषयेऽविशेषेण प्रवर्त्तन्ते, किं वा विशेषोस्तीति? अत्रोच्यते-यत्रोत्तरोत्तरो नयोऽर्थांशे प्रवर्त्तते तत्र पूर्वः पूर्वोपि नयो वर्त्तते एव, यथा सहस्रेऽष्टशती तस्यां वा पञ्चशतीत्यादौ पूर्वसंख्योत्तरसंख्यायामविरोधतो वर्त्तते। यत्र तु पूर्वः पूर्वो नयः प्रवर्तते तत्रोत्तरोत्तरो नयो न प्रवर्त्तते; पञ्चशत्यादावऽष्टशत्यादिवत्। एवं नयार्थे प्रमाणस्यापि सांशवस्तुवेदिनो वृत्तिरविरुद्धा, न तु प्रमाणार्थे नयानां वस्त्वंशमात्रवेदिनामिति। समभिरूढ़नय पर्याय के भिन्न होने पर अर्थ में भेद करता है अतः शब्दनय से समभिरूढ़नय अल्पविषयवाला है एवं तत्पूर्वक होने से उसका कार्य है। समभिरूढ़नय क्रिया का भेद होने पर भी अर्थ में भेद नहीं करता किन्तु एवंभूत क्रियाभेद होने पर अवश्य अर्थ भेद करता है अतः समभिरूढ़ से एवंभूत अल्पविषयवाला है तथा तत्पूर्वक होने से कार्य है। इस प्रकार नैगमादियों का विषय और कारण कार्यभाव समझना चाहिये। 19. शंका- ये सात नय एक विषय में समान रूप से प्रवृत्त होते हैं अथवा कुछ विशेषता है? समाधान- विशेषता है, वस्तु के जिस अंश में आगे-आगे का नय प्रवृत्त होता है उस अंश में पूर्व पूर्व का नय प्रवृत्त होता ही है, जैसे कि हजार संख्या में आठ सौ की संख्या रहती है एवं आठ सौ में पाँच सौ रहते हैं, पूर्व संख्या में उत्तर संख्या रहने का अवरोध है। किंतु जिस वस्तु अंश में पूर्व-पूर्व के नय प्रवृत्त हैं उस अंग में उत्तर उत्तर का नय प्रवृत्त नहीं हो पाता, जैसे कि पाँचसौ की संख्या में आठसौ संख्या नहीं रहती है। इसी तरह अविरुद्ध है, किंतु एक अंशमात्र को ग्रहण करने वाले नयों की प्रमाण के विषय में प्रवृत्ति नहीं हो सकती है। जैसे पाँच सौ में आठ सौ नहीं रहते हैं।