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________________ (xxx) के तृतीय परिच्छेद के 62 और 63वें सूत्र में इसका खण्डन किया गया है। प्रभाकर का समय आठवीं शती है तथा छठे परिच्छेद के आठवें सूत्र में प्रभाकर की प्रमाणसंख्या का खण्डन किया गया है। माणिक्यनन्दि अपने पूर्ववर्ती बौद्ध ग्रन्थ न्यायबिन्दु से प्रभावित रहे। प्रो. उदयचन्द्र जी ने प्रमेयरत्नमाला की प्रस्तावना में न्यायबिन्दु और परीक्षामुख के करीब दस सूत्रों की तुलना दर्शायी है।20 परीक्षामुख का परवर्ती आचार्यों पर प्रभाव आचार्य माणिक्यनन्दि ने जैन न्याय को सूत्रों में निबद्ध करके परवर्ती जैनाचार्यों के लिए जैन न्याय के विकास हेतु एक सुन्दर राजमार्ग का निर्माण कर ही दिया था। इसका लाभ सभी परम्पराओं को मिला। परवर्ती दिगम्बर आचार्यों ने जहाँ एक तरफ परीक्षामुख की टीकायें करके जैनन्याय के चिन्तन को विकसित किया, वहीं दूसरी तरफ श्वेताम्बर परम्परा के अनेक आचार्यों ने भी इसी ग्रन्थ के आधार पर अनेक नये ग्रन्थों का प्रणयन कर डाला। उत्तरकालीन आचार्य वादिदेवसूरि के प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार और हेमचन्द्र सूरि की प्रमाणमीमांसा पर परीक्षामुखसूत्र अपना अमिट प्रभाव रखता है। वादिदेवसूरि ने तो अपने सूत्र ग्रन्थ के बहुभाग में परीक्षामुख को अपना आदर्श रखा है। उन्होंने उसमें नय, सप्तभङ्गी और वाद का विवेचन बढ़ाकर उसके आठ परिच्छेद बनाये हैं जबकि परीक्षामुख में मात्र प्रमाण के परिकर का ही वर्णन होने से छह परिच्छेद ही हैं। प्रो. उदयचन्द्र जैन जी ने परीक्षामुख से साक्षात् प्रभावित प्रमाणनयतत्त्वालोक एवं प्रमाणमीमांसा के सूत्रों की एक सूची प्रमेयरत्नमाला की प्रस्तावना में प्रस्तुत की है जिससे ज्ञात होता है कि वादिदेवसूरि एवं हेमचन्द्र ने कुछ शब्द परिवर्तन और पर्यायवाची का सहारा लेकर अपने नये ग्रन्थों का निर्माण किया है। उसके बाद उसमें कुछ अपना चिन्तन दर्शाया है।
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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