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प्रमेयकमलमार्त्तण्डसार:
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44. पक्षविपक्षव्यापकः सपक्षैकदेशवृत्तिर्यथा - अगौरयं विषाणित्वात् । अयं हि हेतुः पक्षीकृतेऽगोपिण्डे वर्त्तते । अगोत्वविपक्षे च गोव्यक्तिविशेषे सर्वत्र, सपक्षस्य चागोरूपस्यैकदेशे महिष्यादौ वर्तते न तु मनुष्यादाविति । 45. पक्षत्रयैकदेशवृत्तिर्यथा - अनित्ये वाग्मनसेऽमूर्त्तत्वात् । अमूर्त्तत्वं हि पक्षस्यैकदेशे वाचि वर्त्तते न मनसि सपक्षस्य चैकदेशे सुखादौ न घटादौ, विपक्षस्य चाकाशादेर्नित्यस्यैकदेशे गगनादौ न परमाणुष्विति । व्यक्तियों में रहता है, विपक्षभूत गोत्व से रहित अगोरूप भैंस आदि किसी किसी में वह विषाणित्व पाया जाता है और अगौरूप अन्य विपक्ष जो मनुष्यादि हैं उनमें नहीं पाया जाता, अतः विपक्षैक देशवृत्ति अनैकान्तिक है। चतुर्थ अनैकान्तिक हेत्वाभास
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44. पक्ष विपक्ष में व्यापक और सपक्ष के एक देश में रहे वह चौथा अनैकान्तिक हेत्वाभास है, जैसे- यह पशु आगे है गो नहीं, क्योंकि यह विषाणी है, यह विषाणित्व हेतु पक्षीकृत अगो पिड़ में रहता है, [ सींग वाले पशु विशेष में] अगोत्व का विपक्ष जो गो व्यक्ति विशेष है उनमें सर्वत्र रहता है। [यहाँ सामने उपस्थित एक पशु को तो पक्ष बनाया है जो कि अगो है। गो व्यक्ति विशेष जो खण्ड मुण्ड आदि संपूर्ण गो व्यक्तियाँ है उन सभी को विपक्ष में लिया है] इस हेतु का सपक्ष अगो है अतः अगोरूप भैंस आदि किसी सपक्ष में तो वह विषाणित्व हेतु रहता है और मनुष्यादि अगो सपक्ष में नहीं रहता, अतः अपक्षैक देशवृत्ति
कहलाया ।
पञ्चम अनैकान्तिक हेत्वाभास
45. पक्ष सपक्ष विपक्ष तीनों के एकदेश में रहे वह पांचवा अनैकान्तिक हेत्वाभास है, जैसे- वचन और मन अनित्य है, क्योंकि अमूर्त है, यह अमूर्त्तत्व हेतु पक्ष के एकदेश वचन में रहता है (परवादी की अपेक्षा वचन अमूर्त है) मन में नहीं। सपक्ष में एकदेश सुखादि में रहता है घटादि में नहीं, इसी तरह विपक्ष जो यहाँ नित्य है उस नित्यभूत आकाशादि विपक्ष में अमूर्त्तत्व रहता है और परमाणुरूप विपक्ष में नहीं