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भाषा एवं शैली
( xxxvi )
सूत्र का लक्षण कहा गया है
अल्पाक्षरमसन्दिग्धं सारवत् गूढनिर्णयम् । निर्दोषं हेतुमत्तथ्यं सूत्रं सूत्रविदो विदुः ॥ 12
अर्थात् सूत्र वह है जो अल्प अक्षरों वाला, असन्दिग्ध, सारवान् गूढ़ निर्णय वाला, निर्दोष, युक्तिमान् और तथ्य स्वरूप वाला है।
सूत्र का यह लक्षण परीक्षामुख में पूर्ण रूप से घटित होता है। इसके सूत्र सरल, सरस एवं गम्भीर अर्थ को बताने वाले हैं। इसकी संस्कृत भाषा प्राज्ञ्जल एवं सुबोध है। थोड़े से प्रयास से इसे भली-भाँति समझा जा सकता है।
परीक्षामुख में प्रतिपाद्य विषय
इस ग्रन्थ में प्रमुख रूप से प्रमाण और प्रमाणाभास का प्रतिपादन किया गया है। ग्रन्थ छह समुद्देशों में विभक्त है जिसका संक्षिप्त विवेचन निम्नानुसार है
(1) प्रथम समुद्देश
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इसमें प्रमाण का लक्षण, उसके विशेषणों की सार्थकता ज्ञान में स्व-पर के व्यवसायात्मकता की सिद्धि तथा प्रमाण की प्रमाणता को कथञ्चित् स्वतः और कथञ्चित् परतः सिद्ध किया है। कुल 13 सूत्र हैं। (2) द्वितीय समुद्देश
इसमें कुल 12 सूत्र हैं जिसमें प्रमाण के प्रत्यक्ष-परोक्ष ये दो भेद प्रत्यक्ष का लक्षण, अर्थ और आलोक में ज्ञान के प्रति कारणता का निरास, ज्ञान में तदुत्पत्ति ( पदार्थ से उत्पत्ति) का खण्डन, स्वावरण क्षयोपशम रूप योग्यता से ज्ञान के द्वारा प्रतिनियत विषय की व्यवस्था, ज्ञान के कारण को ज्ञान का विषय मानने में व्यभिचार का प्रतिपादन और निरावरण एवं अतीन्द्रियस्वरूप मुख्य प्रत्यक्ष का लक्षण बतलाया गया है।