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________________ (xxi) और उसी अनुसार वर्ण-व्यवस्था चलेगी जैनदर्शन व्यक्ति स्वतन्त्रतावादी है, पुरुषार्थ - विश्वासी है। इसकी पुष्टि आचार्य प्रभाचन्द्र ने 'न्यायकुमुदचन्द्र' पू. 778 में निम्नरूप से की है “क्रियाविशेषयज्ञोपवीतादिचिह्नोपलक्षिते व्यक्तिविशेषे तद्व्यवस्थायाः तद्व्यवहारस्य चोपपत्तेः । तन्न भवत्कल्पितं नित्यादिस्वभावं ब्राह्मण्यं कुतश्चिदपि प्रमाणात् प्रसिध्यतीति क्रियाविशेष निबन्धन एवायं ब्राह्मणादिव्यवहारो युक्तः । " अर्थ- जो व्यक्ति यज्ञोपवीत आदि चिह्नों को धारण करे तथा ब्राह्मणों के योग्य विशिष्ट क्रियाओं का आचरण करें उनमें ब्राह्मणत्व जाति से सम्बन्ध रखने वाली वर्णाश्रम व्यवस्था और तप-दान आदि व्यवहार भली-भाँति किये जा सकते हैं। अतः आपके द्वारा माना गया नित्य आदि स्वभाव वाला ब्राह्मणत्व किसी भी प्रमाण से सिद्ध नहीं होता, इसलिये ब्राह्मण आदि व्यवहारों को क्रियानुसार ही मानना युक्तिसंगत है। उक्त विचारों से आचार्य प्रभाचन्द्र के उदात्त विचार एवं सर्वोदयी भावना का ज्ञान होता है। वस्तुतः यह जैनधर्म का हार्द है जो सभी जीवों को आत्मकल्याण हेतु आमंत्रित करता है। प्रभाचन्द्राचार्य तथा उनके प्रमेयकमलमार्त्तण्ड पर शोधकार्य " आचार्य प्रभाचन्द्र एवं उनके प्रमेयकमलमार्तण्ड पर अब तक जो भी शोधकार्य हुये हैं उपलब्ध जानकारी के अनुसार उनकी एक सूची शोधार्थियों के लाभ की दृष्टि से यहाँ प्रस्तुत की जा रही है। इनमें से कुछ ग्रन्थों की प्रस्तावना/निबन्धों के आधार ही पर प्रभाचन्द्र का उक्त परिचय लिखा गया है। 1. प्रमेयकमलमार्त्तण्ड- मूल ग्रन्थ शोध एवं सम्पादन- पं. महेन्द्र कुमार न्यायाचार्य निर्णयसागर प्रेस, बम्बई, 1941 2. प्रमेयकमलमार्त्तण्ड - भाग 1-3 हिन्दी अनुवाद तथा विवेचन आर्यिका जिनमति जी, लाला मुसद्दीलाल जैन चेरीटेबल ट्रस्ट, प्रथम
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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