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________________ (xviii ) का संकलन है। पं. पन्नालालजी ने लिखा है कि इस संकलन में जो प्राकृत भाग है वह आचार्य कुन्दकुन्द द्वारा भक्ति के रूप में रचा गया है तथा सामायिक पाठ, जो आचार्य पूज्यपाद द्वारा रचे गये हैं उनकी टीका आचार्य प्रभाचन्द्र की जान पड़ती है। सामायिक पाठों में सर्वप्रथम णमोकार एवं चत्तारि मंगलादि पाठ पढ़ा जाता है, उसकी संस्कृत टीका बड़ी सुन्दर है, गद्यात्मक है, वह आचार्य प्रभाचन्द्र की ही जान पड़ती है। 15. गद्यात्मक कथाकोष ईसवी सन् 950 से सन् 1020 के बीच वृहत संस्कृत श्लोकबद्ध कथा की रचना आचार्य हरिषेण ने की थी। इसमें 157 कथायें निबद्ध हैं। संभव है कि इसी रचना से प्रभावित होकर आचार्य प्रभाचन्द्र ने गद्यात्मक कथा-कोष की रचना की है। यह एक गद्यात्मक शास्त्रसम्मत तथा पुराणसम्मत ग्रन्थ है। भाषा-शैली सरल संस्कृत है। आचार्य प्रभाचन्द्र की विशेषतायें आचार्य प्रभाचन्द्र विशिष्ट प्रतिभा के धनी विद्वान तथा अनन्य साधक थे। वे संस्कृत भाषा, दार्शनिक और सिद्धान्त-शास्त्रों के ज्ञाता थे। उन्होंने प्रमेयकमलमार्तण्ड, न्यायकुमुदचन्द्र जैसी प्रमेय-बहुल कृतियों की रचना कर जैन-जैनेतर दर्शन पर अपनी विशिष्टता एवं प्रमाणिकता सिद्ध की है। उन्होंने किसी भी विषय का समर्थन या खण्डन प्रचुर युक्तियों सहित किया है। वे तार्किक, दार्शनिक और सहृदय व्यक्तित्व के धनी रहे हैं। जैनागम की सभी विधाओं पर उनका पूर्ण अधिकार था। प्रभाचन्द्र का ज्ञान गम्भीर और अगाध था। स्मरण-शक्ति भी तीव्र थी। उन्होंने अपनी रचनाओं में पूर्ववर्ती जैनाचार्यों के अलावा भारतीय दर्शन के अन्य महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ वेद, उपनिषद्, स्मृति, पुराण, महापुराण, वैयाकरण, सांख्य-योग, वैशेषिक-न्याय, पूर्व मीमांसा, उत्तर मीमांसा, बौद्ध दर्शन एवं श्वेताम्बर ग्रन्थों आदि सैकड़ों ग्रन्थों के उद्धरण, सूक्तियाँ देकर अपने अगाध वैदुष्य का परिचय दिया है। माघ कवि के
SR No.034027
Book TitlePramey Kamal Marttandsara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekant Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2017
Total Pages332
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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