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31. न हीन्द्रियमदृष्टादिकं वा विज्ञानकारणमप्यनेन परिच्छेद्यते। ज्ञानावरणादि क्षयोपशम रूप योग्यता की ही शरण लेनी होगी।
विशेष- बौद्ध ज्ञान को पदार्थ से उत्पन्न हुआ मानते हैं तथा नैयायिक ज्ञान को पदार्थ और प्रकाश से उत्पन्न हुआ मानते हैं, इन परवादियों की मान्यता का आचार्य ने निराकरण कर दिया है, पदार्थ को यदि ज्ञान का कारण मानेंगे तो सर्वज्ञ का अभाव होने का प्रसंग आता है। क्योंकि जब एक साथ सब पदार्थ वर्तमान रहते नहीं है तब उन सब पदार्थों को ज्ञान कैसे जानेगा? सबको जाने बिना सर्वज्ञ बन नहीं सकता। दूसरी बात पदार्थ के अभाव में भी नेत्र रोगी को पदार्थ दिखाई देता है, विक्षिप्त मन वाले को बिना पदार्थ के उसकी प्रतीति होने लग जाती है इत्यादि बातों को देखकर यह निश्चित होता है कि ज्ञान पदार्थ से उत्पन्न नहीं होता।
प्रकाश भी ज्ञान का कारण नहीं है। रात्रि में बिलाव आदि प्राणियों को बिना प्रकाश के भी ज्ञान होता रहता है तथा मन के द्वारा जानने के लिए भी प्रकाश की जरूरत नहीं रहती। बौद्ध का यह हठाग्रह है कि यदि ज्ञान पदार्थ से उत्पन्न नहीं होता तो यह प्रतिनियत विषय व्यवस्था कैसे बनती है कि अमुक ज्ञान अमुक पदार्थ को ही ग्रहण करता है? तब उसका जवाब यह है कि जैसे दीपक घट आदि से उत्पन्न न होकर भी उन प्रतिनियत घट आदि को ही प्रकाशित करता है वैसे ही ज्ञान भी पदार्थ से उत्पन्न न होकर भी क्षयोपशम जन्य योग्यता के अनुसार प्रतिनियत विषय को जानता है। अर्थात् जिस विषयक ज्ञानावरणी कर्म का क्षयोपशम होता है उस विषय को ज्ञान जान लेता है और जिस विषयक ज्ञानावरणी कर्म का क्षयोपशम नहीं होता, उस विषय को नहीं जानता, भले ही पदार्थ सामने मौजूद हो। यही ज्ञान के विषय की कर्माधीन प्रतिनियत व्यवस्था है।
इस प्रकार अर्थकारणवाद और आलोककारणवाद का निरसन किया गया है।
अब अग्रिम सूत्र प्रस्तुत करते हैं68:: प्रमेयकमलमार्तण्डसारः