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हिंसा का सबसे मुख्य कारण है हिंसा का संस्कार । ये संस्कार एक जन्म के नहीं हैं, जन्म-जन्मान्तरों से संचित होते रहे हैं अपने विचारों और हितों के प्रतिकूल बात सामने आने पर वे संस्कार उत्तेजित होते हैं । उत्तेजना अपने में हिंसा है। उसके कारण हिंसा का स्थूल रूप भी सामने आ जाता है ।
चतुर्थ अध्याय
हिंसा और उसके दुष्परिणाम
हिंसा कब होती है? कैसे होती है? क्यों होती है ? और इसका परिणाम क्या होता है? ये सभी प्रश्न एक सार्थक समाधान की अपेक्षा रखते हैं। हिंसा का कोई काल निर्धारित नहीं होता। वह कभी भी और कहीं भी घटित हो सकती है, क्यों कि इसका असली कारण मनुष्य के भीतर बैठा है। पशु-पक्षी भी हिंसक और अहिंसक दोनों तरह के होते हैं किन्तु हिंसाअहिंसा के बीच विवेक मात्र मनुष्य ही कर सकता है, इसी में उसका मनुष्यत्व है।
हिंसा का स्वरूप
सकता है'
1.
अहिंसा की तरह हिंसा का व्याख्यान भी दो प्रकार से किया जा
1. आत्महिंसा (भावहिंसा)
2. परहिंसा (द्रव्यहिंसा)
यत्खलुकषाययोगात्प्राणानां द्रव्यभावरूपाणाम् ।
व्यपरोपणस्य करणं सुनिश्चिता भवति सा हिंसा ।। - पु. सि. उ. 43