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अहिंसा दर्शन शाश्वत सिद्धान्त का परिस्थिति के साथ समझौता मुझे स्वीकृत नहीं है। हम 'हिंसा' करें-यह हमारी मजबूरी हो सकती है, किन्तु यह अहिंसा नहीं हो सकती। अहिंसा का स्थायी सिद्धान्त है-राग-द्वेष से मुक्त अप्रमत्त होना।' युद्ध को दोनों ओर से राग-द्वेष मुक्त नहीं माना जा सकता। आक्रमणकारी राग द्वेष युक्त होकर युद्ध करता है और प्रत्याक्रमणकारी राग-द्वेष मुक्त होकर युद्ध करता है-ऐसी स्थापना नहीं की जा सकती। निःशस्त्रीकरण की अवधारणा
विश्व शांति की स्थापना के लिए भगवान महावीर ने नि:शस्त्रीकरण का सिद्धान्त दिया था। शस्त्र का प्रयोग जब भी होगा किसी न किसी जीव के वध के लिए होगा या उसे दु:ख पहुँचाने के लिए होगा। चाहे उससे आक्रमण किया जाय या आत्मरक्षा। लोग घरों में आत्म-रक्षा के उद्देश्य से रिवाल्वर या बन्दूक रखते हैं। कभी विक्षिप्तता की स्थिति में, आक्रोश में मनुष्य या तो स्वयं को भी मार लेता है या अपने ही परिवार के सदस्यों को भी भून डालता है। इसी प्रकार परमाणु बम या जैविक हथियार बनाने वाले राष्ट्रों को स्वयं के हथियारों से स्वयं को भी कितना बड़ा खतरा है?
पाकिस्तान भारत पर परमाणु हथियार का प्रयोग करे तो क्या उसका स्वयं का कोई नुकसान नहीं होगा? स्वयं के विनाश की कीमत पर भी दूसरे के विनाश की बात सोचना कितनी भयावह है? इसीलिए युद्ध कभी समाधान नहीं बन सकता; वह तो हमेशा की तरह एक 'समस्या' के रूप में ही रहेगा। युद्ध मजबूरी हो सकता है अनिवार्य नहीं।
शिक्षा से हो शुरुआत
मेरी तो मान्यता है कि 'अहिंसा' विषय शिक्षा का अनिवार्य अंग बना देना चाहिए। सिद्धान्त और प्रयोग इन दोनों माध्यमों से प्रत्येक छात्र एवं छात्रा को अन्य विषयों के साथ साथ अहिंसा का शिक्षण-प्रशिक्षण
1. 'अप्रादुर्भावः खलु रागादीनां भवत्यहिंसेति।' -पुरुषार्थसिह्युपाय/44