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परिशिष्ट
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व्यवहार को नियंत्रित करने वाली वैधानिक प्रक्रियाएं किस तरह मजबूत हों? जाहिर है ये दोनों काम एक व्यापक क्रान्ति की मांग करते हैं। हम इस समस्या के समाधान के लिए निम्नप्रकार के बिन्दुओं पर विचार कर सकते
समाधान (क)
एक हिंसक मनुष्य हिंसा करने से तब बचता है जब उसे सामाजिक बहिष्कार का भय हो या फिर कानून का भय हो या अपनी हिंसा के एवज़ में दण्डित होने का भय हो। इसके लिए हमें समाज और कानून दोनों ही संस्थाओं में नई ऊर्जा का संचार करना पड़ेगा। जो पापी को दण्ड देकर पाप के प्रति भय तो बरकरार रखे ही साथ ही एक ऐसा संतुलन भी कायम रखे जहाँ घृणा पाप के प्रति की जाए न कि पापी के प्रति । इन दोनों ही बातों का मापदण्ड विवेक ही होगा।
समाधान (ख)
आतंकवाद के प्रतिरोध की सभी कार्यवाही नागरिक प्रशासन के नियंत्रण में भी होनी चाहिए ताकि इसे रोकने में समाज की भी भूमिका रहे।
समाधान (ग)
भारतीय जेलों में कैदियों को सामाजिक परिवेश व सुविधाएं देकर उनमें इस आशा का संचार किया जाए कि वे अपने में निहित ऊर्जाओं का उपयोग सृजनात्मक कार्यों में करके उन्नति कर सकते हैं तथा समाज का भी यह दायित्व इस स्थान पर बनता है कि यह सुधारे हुए कैदियों को कैद मुक्त होने पर समाज में पुनः प्रतिष्ठा भी दे।
समाधान (घ)
आधुनिकता मनुष्य की मानसिकता से जुड़ी हुई चीज है। यह उसके भीतरी सोच का प्रतिबिम्ब है। आधुनिकता की परिभाषा में ऐसा