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अहिंसा दर्शन
पाखण्डवादियों का आतंक
देश में तथाकथित संतों और साधुओं का एक बड़ा वर्ग भी निवास करता है जो धर्म के नाम पर सामान्य जनता के मन में अनेक तरीकों से आतंक बनाए रखता है। आज 21वीं शताब्दी में भी अनैतिक मनोकामनाओं की प्राप्ति के लिए बड़े-बड़े उद्योगपति, नेता और माफिया भी इन साधुओं के माध्यम से अनुष्ठान करते और नर बलियाँ तक चढ़ाते दिखाई दे जाते हैं। इसी प्रकार के और भी इनके विविध आतंकवादों के रूपों के ऐसे चेहरे हैं जिनकी तरफ सामान्यतः लोगों का ध्यान नहीं जाता।
ज्ञान का आतंक
आज समूचा जगत् सूचनाओं का शिकार हो गया है। हम सूचना संस्कृति में जीने के लिए मजबूर हैं। हमें मजबूरन 75 प्रतिशत ऐसी बातों का ज्ञान रखना पड़ता है, जिनका हमारे वास्तविक जीवन से कोई सरोकार नहीं है। पाठ्यक्रमों में अनावश्यक वृद्धि, परीक्षाओं में 'छटनी पद्धति के आधार पर योग्यताओं और प्रतिभाओं का निर्धारण, भाषा विशेष के ज्ञान की प्रमुखता तथा शिक्षा का वैश्वीकरण इत्यादि ऐसे कारण बन रहे हैं जो वास्तविक सृजनात्मक प्रतिभाओं को आगे बढ़ने से रोक देते हैं। यह भी समाज में समाधान के स्थान पर समस्या बनकर आतंक की तरह फैल रहा है। अभिव्यक्ति के लिए भाषा विशेष की बाध्यता कुंठा-भय को जन्म दे रही है।
आधुनिकता का आतंक
__ यह हम पहले भी कह चुके हैं कि आतंक को मार-काट तक ही सीमित नहीं किया जा सकता। भारतीय मानस में एक और नया आतंक फैल चुका है जो कई नई समस्याओं को जन्म दे रहा है। वह है नई आधुनिकता का 'आतंक' आज अच्छा बनने की अपेक्षा अच्छा दिखने का जुनून लोगों के दिलों पर सवार है। आधुनिकता के दिखावे के अनुसार श्रेष्ठ वह नहीं जो कुर्ता-पजामा पहन कर नये आविष्कार करे बल्कि श्रेष्ठ वह समझा जा रहा है जो फटी जीन्स, टी-शर्ट पहनकर बीयर-बार मे भौड़े डान्स करे। इस आतंक