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अहिंसा दर्शन
तिलभर मछरी खाइकै, कोटि गऊ दै दान। कासी, करवत लै मरे, तौ हू नरक निदान।।'
सभी जीव समान हैं अतः किसी भी जीव का वध नहीं करना चाहिए- यह बात कबीर रविदास तथा दादू आदि सभी संतों ने माना है- वे कहते हैं
'रविदास' जीव मत मारहिं, इक साहिब सभ माहि। सभ मॉहि एकउ आत्मा, दूसरह कोउ नांहि।। कबीर के शब्दों में
जउ सम भहि एकु खुदाइ कहत हउ तउ किउ मुरगी मारै।" दादू कहते हैंकाहे कौं दुःख दीजिये, साईं है सब माहि। दादू एकै आत्मा, दूजा कोई नांहि।।2 (दादू) कोउ काहू जीव की, करै आतमा घात। साच कहूँ संसा नहीं, सो प्राणी दोजगि जात।।
जो जीव मांस खाते हैं उन्हें नरक में जाना पड़ता है यह बात कबीर और रविदास दोनों मानते हैं
रविदास कहते हैं
अपनह गीव कटाइहिं, जौ मांस पराया खाय।
'रविदास' मांस जौ खात हैं, ते नर नरकहिं जाय।।4 9. सन्तकबीर (सखियाँ), पृ. 294 10. रविदासदर्शन, साखी - 188
आदिग्रन्थ, पृ. 1350 12. दादू दयाल की बानी, भाग - 1, बया निर्वैरता - 13 13. वही, सांच-4 14. रविदास दर्शन, साखी-189
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