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नवम अध्याय
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फर्जी मुठभेड़ में निर्दोषों को अपराधी घोषित कर मारना। गरीब तथा कमजोर वर्ग को सताना एवं अमीर और बलवान लोगों को प्रश्रय देना। रिश्वत लेकर गौर-कानूनी कार्य होने देना।
(4) द्वेष या बदले की भावना से निर्दोष लोगों को फँसाना। (5) अनपेक्षित लाठीचार्ज या फायरिंग करना इत्यादि।
इनके अलावा और भी अधिक हिंसाएँ हैं, जो कानून को नजरअन्दाज करके की जाती हैं। समाज और व्यक्ति जब कानून तोड़ता है, तब इनका कार्य शुरु होता है किन्तु जब कानून के रक्षक ही इन भूमिकाओं में आ जाते हैं, तब शक्ति और अधिकार के दुरुपयोग खुलकर सामने आते हैं और आम जनता असुरक्षा और भय के वातावरण में जीने को मजबूर हो जाती है।
इन कमियों को दूर करके कानून में अहिंसा की स्थापना, एक स्वस्थ समाज व राष्ट्र को जन्म देती है।
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कानून में अहिंसा के प्रयोग निम्न प्रकार से हो सकते हैं - पुलिस प्रशासन, कानून के प्रति दृढ़ अवश्य हों किन्तु सहृदय भी हों और मानवीय संवेदनाओं को समझें।
(2) (3)
निर्दोषों को बिना वजह न सतायें और न फँसायें। यदि संवाद से समस्याएँ सुलझती हों तो अनावश्यक बल प्रयोग न
करें।
(4) कानून के रक्षक, मदिरापान आदि दोषों से दूर रहें। (5) अपने हर निर्णय में यह ध्यान रखें कि इससे जनता का हित कितना
हो सकता है?
अहिंसा के प्रयोग भावनात्मक स्तर पर कई प्रकार के हो सकते हैं। मात्र आवश्यकता है उस पर आस्था की। इनसे न सिर्फ जनता के और